कल का पता न पल का पता, बांधता मन-मन की।
जवानी के झाग झांवर गए, रेनी मैली भवन की।
ठान खोदता, आन अज़माता, सुध न रही कंचन तन की।
तेरा, मेरा मिट read more >>
ऩजर को लगी ऩजर, दिखाई देते पर दोष।
खुद को तो मानता, गुण-रत्न का कोष।
दूसरों की उघाड़कर, खुद की ढकने का होश।
दूर की जलती सूझे, घर में जले तो read more >>