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Bholenath sharma
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सबकी प्रिय
जूझ रहे जो गम से अपने वो तेरी शरण में आते है मधुशाला कष्ट मिटा देती हो तुम जिनका उनके उर बस्ती हो तुम मधुशाला ।
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में सबकी प्रिय हूँ मधुशाला ।
वे डूबे है तुझमें , तुम हो उनकी प्रिय हाला तेरे लिए बिछुडगें अपनो से , पर तुझसें न बिछुड़गें मधुशाला ।
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तेरे यहां मधुशाला
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दीवाने हुए हम
उनके कुछ प्रियजनों के संग रहकर बर्बाद हुए हम उनके मध्य रहकर निपुण हुए उनकी कलाओं में दीवाने हुए हम तेरे , तेरे यहाँ आकर
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कोई क्या करे
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वह अप्रितम आनंद कहाँ
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अवध नगरी में होली , खेले रघुरइया
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तुम आ भी जाओ न
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सखी
मिले अधिक न वे सखी , जिनको मिलने जाय । मिले सखी के वे सखी , वे सखि देखत छिप जाय ।
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अकेला मन
मन अकेला है , या कुछ और बात है कुछ तुम कुछ हम , दोनों उदास है । खाली बैठे थे हम इसलिए की सूँकून मिलेगा , मगर हम सोच सोचकर उदास है
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