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भले ही बस गये है रोटी के लिए शहर, गांव क्या है ये हम भूले नहीं है। बंद कोठरी में हम बेमन रहते यहाँ , घर का खुला आँगन हम भूले नहीं है। read more >>
अभिनंदन , अभिनंदन , अभिनंदन पधारो मेरे प्रभु कौशल्या नंदन मगन है अवध की हर गलियाँ मेरे प्रभु आपक read more >>
हो रहा है मंगल गान मेरे प्रभु आये है अपने धाम मगन है सब प्रभु के धुन में मेरे प्रभु आये है अपने धाम read more >>
मैं उन्हें जानता हूँ पर वो मुझे पहचानते नही , बिना काम के वो मुझको read more >>
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