चंद्र प्रकाश 07 May 2023 कविताएँ समाजिक 6426 0 Hindi :: हिंदी
होली रंग -26 छोड़ घर शहर, होली मनाने गाँव चला था, दिल पिचकारी बना , रंग लाल, पिचकारी मे, रक्त भरा था, लिए अरमान होली खेलने के, मन मेरे, गुलाल भरा था, खुशी, उमंग अपनों से मिलने की, रंग मुझ पर होली का चढ़ा था, शहर से गाँव होली खेल कर आऊँ, अनुभव अपना शहर बताऊँ, होली गाँव मना ना पाया, चूंकि गाँव भी अब शहर बना था, छोड़ घर शहर, होली मनाने गाँव चला था II1 II होली तरसे प्रेम को, रंग तरसे प्यार को, बिना पानी पिचकारी तरसे, जन तरसे बोछार को परिवार तरसे मिलने को, समाज तरसे व्ययहार को, नशा शराब लत बुरी, खुशी तरसे, होली त्यौहार को, खेल होली का खेल ना पाया, चूंकि दिल लोगों का ना मिला था छोड़ घर शहर, होली मनाने गाँव चला था II 2 II लौट चला मैं बिना होली, समझे था रंग जाऊँ रस्ते में, खुले आसमां चलता गया, रगें कोई, ढूँढता गया रस्ते में, मिले कोई होली रंग में, ताकता गया होली उमंग रस्ते में मिला नहीं कोई होली रंग रस्ते में, हार गया रंगीन होली जंग रस्ते मेँ, भरा रहा रंग, गुलाल, दिल बस्ते मेँ, रंग होली पड़ा फ़ीका , खफा सी पी गाँव से शहर भला था, छोड़ घर शहर, होली मनाने गाँव चला था II 3 II होली मुबारकबाद मिली, बच्चों से भी आशीर्वाद मिली, शुभकामनाएं वर्तमान, भविष्य मिली, गुलदस्ते, फूल टोकरी, गुलाल भरी बाल्टी, बड़ी- छोटी पिचकारियाँ मिली, जो भी मिली सामने नहीं, फेंकी हुई मोबाईल मे कृत्रिम मिली, थी दिल मे जिसकी चाहत, मिलती राहत, वो ना मिली ना तस्वीर ना सूरत, , किसी की भी भौतिक मूरत ना मिली, गले मिले बिन क्या होली, अपनों के बिन क्या होली , वृद्ध हुई होली, अ होली ! कितना आँनंदित तेरा डंडा और डर चला था, छोड़ घर शहर, होली मनाने गाँव चला था II 4 II चंद्र प्रकाश @ सेठी 08.03.23