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मोती लाल साहु

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ये दरिया कल-कल बहती! बादलों से झरते, रिमझिम फुहारें। दिल के साज छेड़ती, ये दरिया कल-कल बहती।। ये मौसम बहारों का, और ये फिजाएं। पहाड़ो read more >>
सपनों की लाली ! आंखें चार हुई थी, मुलाकात खूब हुई थी- जो जुबान से कह ना पाए, सोचा था- एक लाल गुलाब दूंगा लाल बाग से चुन लाऊंगा, भेंट करूं read more >>
राहगीर मैं आया हूं, सुर साथ लाया हूं हवा छेड़ेगी हर साज, मौसमें बहार गाऊंगा बसंती बयार में फागुन के राग -मोती read more >>
ऋतुराज- जो आए हैं, बारह मास के बाद। बहकती- चली बसंती बयार, ओढ़ के पीली चुनरिया।। खिल रहें- ये सरसों के फूल, खुशबू बिखेरने लगीं हैं। ख read more >>
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