YOGESH kiniya 30 Mar 2023 आलेख राजनितिक युद्ध और उसके परिणाम 22494 0 Hindi :: हिंदी
युद्ध शान्ति मात्र दो वर्णों के मेल का एक शब्द नहीं है अपितु हर सभ्यता के शासन को सुशासन प्रदान करने वाला वो अमोध हथियार है ,जिसको जिस सभ्यता ने अपनाया वही सभ्यता कालजयी बनकर इतिहास में आदर्शमयी बन गई। अगर हम बात करे इसके विलोम अर्थ की अर्थात युद्ध की ; तो पाते है कि युद्ध दो वर्णों का शब्द नहीं है अपितु काल का विकराल और प्रचंड रूप है । क्योंकि युद्ध अपने साथ लाता है अथाह तबाही और संघर्षमय भविष्य । प्रथमत: तबाही के रूप में युद्ध समाज को देता है जन सामान्य के अपार रक्त पात से सना हुआ कष्टकारी और विकट भविष्य। और उस अविवेक पूर्ण रक्तपात से समाज को मिलती है एक पूर्ण पीढ़ी की रिक्तता। और उस पीढ़ी के जाने का सर्वाधिक दंश झेलता है वो परिवार, जिसके अपने उस युद्ध की भेट चढ़ चुके होते है। और उन अपनों में बच्चे, बूढ़े,औरतें, जवान , सैनिक सभी शमिल होते है। और उस युद्ध के तांडव की भेट चढ़ने वाले पीछे छोड़ जाते है अविस्मरणीय और कारुणिक यादे तथा अधूरी जिम्मेदारियां जिसके दर्द में बेगुनाह परिवार और समाज हमेशा छटपटाता रहता है। दूसरी तबाही के रूप में देश को भुगतना पड़ता है अथाह आर्थिक सर्वनाश। जिसकी पूर्ति वह देश कभी नही कर पाता है । क्योंकि वह देश उस युद्ध की विभीषिका में हो चूके सर्वनाश की भरपाई में अपने समसामयिक विकास के बारे में कभी सोच ही नहीं पाता है । और परिणाम स्वरूप विकास की राह पर तीव्र गति से दौड़ने वाली दुनिया से पीछे छूट जाता है । क्योंकि युद्ध में केवल नरसंहार और आर्थिक तबाही ही नहीं होती है अपितु विनाश होता है उस देश की कला, संस्कृति व सभ्यता का भी। हर युद्ध को टाला जा सकता है । परन्तु कहा जाता हैं कि युद्ध हमेशा हालातों की पैदाइश होता हैं।अगर उन हालातों की तह तक जाकर देखा जाए। तो केवल एक ही कारण निकल कर आता है और वो है सत्ता लोलुपता। इतिहास गवाह हैं की जिस देश की राजसत्ता की सत्ता लोलुपता की भूख मुखर हुई है उसने हमेशा अविवेकपूर्ण रक्तपात करवाया ही है ; और इस रक्तपात के परिणाम चाहे कुछ भी रहे हों। सम्राट अशोक महान का बुद्ध की शरण में जाना ,सत्ता लोलुपता की विकराल भूख में किए गए अविवेकपूर्ण रक्तपात का ही परिणाम था। ऐसा नहीं है की युद्ध में अपने आप को झोंकने वाला देश यह नहीं जानता है कि युद्ध का परिणाम कितना भीषण होगा । परन्तु सता लोलुपता की भूख राजसत्ता को इतना अंधा बना देती है की वो भूल जाती है की उसकी यह भूख एक विस्तृत नर संहार और अपार भौतिक तबाही के बाद ही शांत होगी। अगर इसके ताज़ा उद्धरण के रूप में रूस और यूक्रेन के युद्ध को देख लिया जाए तो कोई हर्ज ना होगा। युद्ध का रूप कितना ही भयंकर रहा हो परंतु इसका अंत हमेशा उसके विलोम शब्द पर ही आकर खत्म होता है और वह है सुलह या शान्ति ।
Senior teacher Swami Vivekanand government model school siwana, Barmer...