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मन के हारे हार है

virendra kumar dewangan 30 Mar 2023 आलेख अन्य prernatmak 88240 0 Hindi :: हिंदी

मन के हारे हार है
	मन इंदियों का स्वामी, उसका नियंता है। इच्छाओं के मूल में मन ही है। 
इंदियों की कठोरता या मृदुलता के पीछे भी मन है। मन ही वचन व कर्म की सबलता या दुर्बलता का वाहक है।
    इसलिए जब मन हारता है, तब लगता है कि हमारी हार हो गई है; जब जीतता है, तब लगता है कि हमने बाजी जीत ली है।
	किसी कार्य को हाथ लगाने से पहले मन में उसका ध्यान आता है। यानी सबसे पहले कार्य की रूपरेखा मन में ही तैयार होती है। 
इसी से मानसिक दृढ़ता का विकास होता है, जो सोच को फलीभूत करने में अग्रणी भूमिका का निर्वहन करता है।
	काम को करने या न करने का फैसला मन ही करता है। 
जब मन चाहता है कि यह काम करना चाहिए; हितकर है, तब दिल-दिमाग उस ओर सोचने लगता है। 
मन ही लोगों को कार्य करने के लिए प्रेरित या दुष्प्रेरित करता है।
	बेशर्मी, ढिठाई, संकोच, झेंप मानसिक रोग माने जाते हैं। बेशर्मी या ढिठाई जब बढ़ जाती है, तब मन का झुकाव अपराध की ओर हो जाता है। 
    इसके विपरीत, संकोच या झेंप बढ़ने से मन का संकुचन होता है और वह नकारेपन की ओर बढ़ता चला जाता है। 
विवेकशील इंसान के लिए दोनों स्थिति सही नहीं मानी जाती। इसलिए, बेशर्म, ढीठ, संकोची और दब्बू स्वभावी बनने के बजाय बीच के रास्ते से मनोमालिन्य दूर किया जाना चाहिए। 
अतः, मानसिक दृढ़ता व दिव्यता मध्यम रास्तों से हासिल हो सकती है।
	इसके लिए उच्चकोटि के लेखकों की पुस्तकों का अध्ययन, अच्छी शिक्षा का ग्रहण, प्रकृति का सानिध्य, परिवार का ख्याल, माता-पिता की सेवा, गरीबों की सहायता, दुर्बलों की मदद और सन्मार्ग से अपनी कमियों को दूर करते रहना चाहिए। 
    इससे मन की हीनता व दुर्बलता का शमन होता है और व्यक्तित्व आकर्षक बनता चला जाता है।
	आकर्षक व्यक्तित्व के स्वामी से सभी मिलना चाहते हैं। ऐसा इंसान सबको सुहाता है? उसके चालढाल, बनाव-श्रृंगार, बातचीत, व्यवहार-बर्ताव, वेशभूषा के सभी कायल होते हैं। 
    ऐसे में, दूसरों की स्वीकृतियां उसके के लिए हितकर होती चली जाती है। इससे मानसिक दृढ़ता का पोषण होता है।  
	सभी के जीवन में कठिन अवसर आते हैं। सबको कठिनाई व परेशानी से दो-चार होना पड़ता है। 
जीवन की विध्न-बाधाओं से कोई अछूता नहीं है। ऐसे अवसरों पर हिम्मत रखकर सही दिशा में कार्य करते रहने में ही भलाई है। 
     इसलिए कहा भी गया है, ‘‘हिम्मते मर्दा, मददे खुदा’’ यानी जो व्यक्ति मर्द की तरह हिम्मत से काम लेता है, ईश्वर उसकी सहायता तत्परता से करता है।...और जिसका सहायक ईश्वर है, उसको सफलता से भला कौन रोक सकता है?
	 इच्छित कामयाबी नहीं मिलने पर कई बार निराशा व हताशा आ धेरती है। 
कामयाबी के ये रोड़े होते हैं, जिसको मनोबल ऊंचा रखकर दूर किया जा सकता है। 
     हमें भूत और वर्तमान से सबक लेकर सही दिशा पकड़ना चाहिए। इसके लिए अपने द्वारा निर्धारित क्षेत्र के सफल लोगों का अनुसरण करना चाहिए। विजयश्री इन्हीं मार्गो से आती है।
	इच्छाशक्ति, संकल्प व दृढ़निश्चय से मनोबल को ऊंचा रखना हर उस व्यक्ति के लिए जरूरी हुआ करता है, जो जीवन में कुछ बनना चाहता है। 
इसके उलट जिनकी इच्छाशक्ति दृढ़ नहीं होती, वे असमंजस में रहा करते हैं।
     ऐसे लोग एक दिशा में निष्ठापूर्वक कार्य नहीं कर पाते। 
ऐसे-ऐसों की हार निश्चित हुआ करती है। इसलिए कहा जाता है, ‘‘मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।’’
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अनुरोध है कि लेखक के द्वारा वृहद पाकेट नावेल ‘पंचायतः एक प्राथमिक पाठशाला’ लिखा जा रहा है, जिसको गूगल क्रोम, प्ले स्टोर के माध्यम से writer.pocketnovel.com पर  ‘‘पंचायतः एक प्राथमिक पाठशाला veerendra kumar dewangan से सर्च कर या पाकेट नावेल के हिस्टोरिकल में क्लिक कर और उसके चेप्टरों को प्रतिदिन पढ़कर उपन्यास का आनंद उठाया जा सकता है तथा लाईक, कमेंट व शेयर किया जा सकता है। आपकी प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा रहेगी।

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