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भीमा-कारेगांव का संघर्षः

virendra kumar dewangan 30 Mar 2023 आलेख दुःखद New Year 32670 0 Hindi :: हिंदी

    1 जनवरी 2018 को मराठों और दलितों के बीच हुए गंभीर वाद-विवाद में एक व्यक्ति की मौत हो गई, जिससे मामला उग्र हो उठा। हिंसक भीड़ ने जहां-तहां पथराव कर गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया। चक्का जाम से राज्यभर में अशांति फैलाने की कोशिशें की गई।
गौरतलब है कि 01 जनवरी को महाराष्ट्र के पुणे जिले के भीमा-कोरेगांव में दलितों के द्वारा शौर्य दिवस मनाया जाता है, जिसमें हजारों की संख्या में दलित समुदाय के लोग कोरेगांव के जयस्तंभ में एकत्र होते हैं। 2018 का यह जलसा विजय दिवस के 200 साल पूरा होने के उपलक्ष्य में मनाया जानेवाला था, जिसके लिए दलित समुदाय के लोगों में खासा उमंग व जोश था।
गौर-ए-काबिल यह भी कि 01 जनवरी 1818 को अंगे्रजों और पेशवा द्धितीय के मध्य हुए युद्ध में अंगे्रजी सेना ने पेशवाओं को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था। 
अंग्रेजीं सेना में बड़ी संख्या में महार जाति के लोग सैनिक थे। कहा जाता है कि पेशवाओं को हराने में महार जाति के सैनिकों ने अदम्य साहस और अनूठे शौर्य का जबरदस्त प्रदर्शन किया था।
असल में, वे पेशवाशाही और ब्राह्मणशाही से बेहद खफा थे, जिसने हिंदू-समाज को वर्ण-व्यवस्था की जंजीरों में बुरी तरह जकड़ रखा था। नतीजतन, महार जाति पूरी तरह पददलित, दमित, उपेक्षित व अपमानित महसूस कर रही थी और सदियों पुरानी वर्ण-व्यवस्था में बदलाव के लिए इस युद्ध के मार्फत युद्धक-संघर्ष में जीजान से जुट गई थी।
                      इतिहास
       भारतवर्ष में लंबे समय से न केवल वर्ण-व्यवस्था लागू रही है, वरन् मुस्लिम व फिरंगी शासकों का राजकाज रहा है। एक ओर वर्ण-व्यवस्था भेदभावपरक थी, जो ऊंच-नीच, जांत-पांत के बंधनों में देशवासियों को जकड़ती थी, तो दूसरी ओर विदेशी हुक्मरान मुस्लिम और ईसाई धर्म के प्रसार व विस्तार के लिए बहुतेरे प्रयास कर रहे थे। 
       वे कभी तलवार की धार पर धर्म परिवर्तन करवा रहे थे, तो कभी प्रलोभन, भय और आतंक पैदा कर अपने धर्म के लोगों की संख्या में इजाफा करने पर तुले हुए थे। 
        इसी का दुष्परिणाम है कि जब भारत को आजादी देने की बात सामने आई, तब मुस्लिम लीग के द्वारा मुस्लिमबहुल क्षेत्र को अलग कर मुस्लिम-राष्ट्र बनाने की मांग रखी गई। 
        यही वह द्विराष्ट्रवाद का सिद्धांत था, जो विभाजन के बाद भी नासूर बना रहा। हिंदूबहुल क्षेत्र को भारत (हिंदुस्तान) और मुस्लिमबहुल क्षेत्र को पाकिस्तान राष्ट्र का दर्जा तो मिला, लेकिन इसके बाद हुए रक्तपात से दोनों कौमें थर्रा उठीं।
        दरअसल, खंड भारत या पाकक्षे़त्र में कई क्षेत्र ऐसे रह गए, जहां कहीं मुस्लिमों की आबादी अधिक थी, तो कहीं हिंदुओं की। जब विभाजन हुआ, तब गलतफहमी और परस्पर राग-द्वेष से सांप्रदायिक चिंगारी भयंकर मारकाट में बदल गई। ज्यादातर बेकसूर रहवासी चपेट में आ गए। पाकिस्तान से टेªन भर-भरकर हिंदुओं की रक्तरंजित लाशें भारत आने लगीं, तो बदले में हिंदुओं ने मुसलमानों को काट-काटकर भेजनी शुरू कर दी। 
     इस बदहवास अमानुषिकता में 10 लाख लोगों की जानें चली गईं। करीब 1.50 लाख महिलाओं की अस्मिता तार-तार हो गई। 1.50 करोड़ लोग बेधरबार होकर दाने-दाने को मोहताज हो गए।
    चूंकि भारत में सभी धर्मावलंबी निवासरत थे, इसलिए यहां लोगों को मनपसंद धर्म अपनाने  की आजादी संविधान से प्रदत्त की गई। लिहाजा हिंदुस्तान धर्मनिरपेक्ष देश बना। पाकिस्तान का जन्म मुस्लिम बहुलता की वजह से हुआ था, इसलिए वहां का राष्ट्रधर्म इस्लाम कहलाया।
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अनुरोध है कि लेखक के द्वारा वृहद पाकेट नावेल ‘पंचायत’ लिखा जा रहा है, जिसको गूगल क्रोम, प्ले स्टोर के माध्यम से writer.pocketnovel.com पर  ‘‘पंचायत, veerendra kumar dewangan से सर्च कर और पाकेट नावेल के चेप्टरों को प्रतिदिन पढ़कर उपन्यास का आनंद उठाया जा सकता है तथा लाईक, कमेंट व शेयर किया जा सकता है। आपके प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा रहेगी।

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