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अजब पाकिस्तान की, गजब दास्तान

virendra kumar dewangan 30 Mar 2023 आलेख राजनितिक Other country 86120 0 Hindi :: हिंदी

पाकिस्तान में करीब पखवाड़े भर से चले सत्ता-संघर्ष में आखिरकार इमरान खान को अपनी कुर्सी गंवानी पड़ ही गई। वहां जिस तरह से सब के सब नेता अवाम की भलाई और कश्मीर का राग अलापते रहे, उससे तो यही साबित होता है कि वे न अवाम के हितवर्धन और न कश्मीर की आजादी के लिए ये सब कर रहे। उन्हें तो किसी तरह सत्ता पर काबिज होना है और जनता को बरगलाकर सत्तासुख भोगकर अकूत धनदौलत बनाना है। 
तभी तो वहां की कट्टर दुश्मन पार्टियां, जो एक दूसरे को फूटी आंख नहीं सुहाती थीं और एक दूसरे को चोर, डाकू और लुटेरे तक कहती थीं, अब वहां की सत्ता को हथियाने के लिए एक-दूसरे से हाथ मिला चुकी हैं। ऐसा ही सत्तासुख भारत के महाराष्ट्र में भी भोगा जा रहा है। यही नहीं, पाकिस्तान में जिस तरह से पक्ष-विपक्ष के नेताओं पर भ्रष्टाचरण के मुकदमें चल रहे हैं, कइयों को सजा हो चुकी है, कुछ देश छोड़कर भाग चुके हैं, उससे तो इसी बात की तस्दीक होती है कि वहां न केवल दाल में काला है, अपितु पूरी दाल ही काली है।  
इमरान खान आखिर तक यही रट लगाते रहे कि उसे पदच्युत करने के पीछे अमेरिका जैसा देश और विदेशी पैसों का खेल है, लेकिन गूंगे-बहरे और अपना जमीर तक बेच चुके नेशनल एसेंबली के सदस्यों ने उनकी एक नहीं सुनी और उन्हें बहुमत के आगे अपना पद गंवाना पड़ गया। जबकि वहां के फौजी जनरल बाजवा अमेरिकी पक्ष का बचाव कर रहे हैं और अमेरिका से अच्छे संबंध बनाने के हिमायती दिख रहे हैं।
लगता है, इमरान खान कुटिल चीन की छद्म दोस्ती से बुरी तरह प्रभावित थे और उनसे दोस्ती की आड़ में अमेरिका जैसे शक्तिशाली मुल्क से दुश्मनी मोल लेने के लिए कमर कसे हुए थे। जबकि चीन के कर्ज का खामियाजा एक और पड़ोसी मुल्क श्रीलंका भुगत रहा है। क्या यह सीख पाकिस्तानी हुक्मरानों को सीखने के लिए पर्याप्त नहीं है? 
असल में चीन भारत का भी दुश्मन है और दुश्मन का दुश्मन दोस्त ही होता है। यही नीति पाकिस्तान ने अपना रखी है, जो भारत से अच्छे संबंध बनाने की केवल हिमायत करती रहती है और आतंकवाद पर चुप्पी साधे रहती है, जो मृग मरीचिका के सिवाय और क्या हो सकती है?
इतिहास गवाह है कि पाकिस्तान के हुक्मरानों ने कभी जनता की भलाई के लिए कोई खास काम नहीं किया है। यदि किया होता, तो वहां महंगाई, मुफलिसी, बेरोजगारी, अराजकता, आतंकवाद, भ्रष्टाचरण, अशिक्षा, अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा, विदेशी कर्ज इस तरह से हावी नहीं रहता, जिस तरह से एक आजाद मुल्क में पैर पसार चुका है और पाकिस्तान की समूची अर्थव्यवस्था व साख को बट्टा लगा चुका है।
जो इमरान खान राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में बार-बार भारत की खुली विदेश नीति की तारीफ करते रहे, वही इमरान खान ये क्यों भूल गए कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग था, है और रहेगा। उनका कश्मीर पर राग अलापना खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे जैसे कहावत को ही चरितार्थ कर रहा था। ऐसी ही बात वहां के भावी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने भी कही है और आनेवाले हुक्मरान भी तब तक करते रहेंगे, जब तक भारत से बुरी तरह पीटे नहीं जाएंगे। 
क्या यह शोभनीय है कि एक पड़ोसी संप्रभु मुल्क के हिस्से को हथियाने के लिए वहां के हुक्मरान अपने अवाम को बार-बार धोखे में रखकर बयानबाजी करते रहें। जबकि पाकिस्तान धोखे से भारत के एक बड़े भूभाग को अभी तक अपने कब्जे में रखा हुआ है, जिसे पाक अधिकृत कश्मीर कहा जाता है। अब, वक्त आ गया है कि भारत, पाक अधिकृत कश्मीर की प्राप्ति के लिए अपना दावा ठोंकना आरंभ करे और इसी मुद्दे को लेकर चर्चाएं छेड़े।
पाकिस्तान के सियासतदानों को इस बात की चिंता नहीं है कि वहां भयावह रूप से पैर पसार चुके आतंकवाद की वजह से उसे एफएटीएफ में ब्लैक लिस्टेड करने का खतरा मंडरा रहा है। यह आतंकवाद भारत को निरंतर जख्म-पर-जख्म दे रहा है और समूची दुनिया को आतंकित कर रखा है। आतंकवादी वहां न केवल खुलेआम घुमते रहते हैं, अपितु अपने दहशतनाक एजेंडे पर भी काम करते रहते हैं। यहां तक कि पड़ोसी मुल्क अफगानिस्तान की सत्ता में भी इन्हीं आतंकवादियों के दोस्त-यार काबिज हो चुके हैं और पाकिस्तान की सीमा को बदलने की फिराक में है। इसके बावजूद वहां के शासक आतंकवाद पर एक शब्द बोलना नहीं चाहते। वहां की मीडिया भी इस पर चुप्पी साधे रहती हैं।
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अनुरोध है कि लेखक के द्वारा वृहद पाकेट नावेल ‘पंचायत’ लिखा जा रहा है, जिसको गूगल क्रोम, प्ले स्टोर के माध्यम से writer.pocketnovel.com पर  ‘‘पंचायत, veerendra kumar dewangan से सर्च कर व पाकेट नावेल के चेप्टरों को प्रतिदिन पढ़कर उपन्यास का आनंद उठाया जा सकता है और लाईक, कमेंट व शेयर किया जा सकता है।

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