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जो चहक रहा-ए-तू... जो महक रहा-ए-तू... अविनाशी तोरे मन-मंदिर, मर्ज़ी जहां-ए-ढूंढ़।। -मोती read more >>
कुछ नही अब बस एक पहचान बनाना बाकी है शायरी के सिवा कुछ आता नही, इसी शायरी से बस एक नाम बनाना बाकी है                -    प्रवीण चौबे read more >>
जो लखे तन अंदर- अविनाशी का खेल न्यारा-न्यारा, वो जगत बीच खिलता- जस किचड़ में कमल न्यारा-न्यारा -मोती read more >>
तन माटी जा में आता-ए-सांस, तन में जीवन है लाता-ए-सांस, ये पल दो पल का साथ है सखी... ये तन हद-अनहद मेल है सखी..!! -मोती read more >>
यह दुनिया मैदान खेल का, हो तुम्ही खिलाड़ी खेल का, चेत कर खेलना जीवन का खेल... खास-ए-नजर रब रेफ़री है....!!!! -मोती read more >>
लगता भुल भुलैया-ए-संसार, लगता क्या अजब-गजब संसार, मानव कृति कला कीर्ति उड़ान अनेक... न उड़े कोई ख़ुद में ख़ुदा तक।।।। -मोती read more >>
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