Uday singh kushwah 29 Sep 2023 कविताएँ समाजिक गूगल याहू बिंग 12472 0 Hindi :: हिंदी
पल पल परिवर्तित होती दुनिया कभी बचपन तो ,कभी जवानी कभी देख बुढ़ापा क्यों हो हैरानी। न कर तू मोह इस जग का......! कभी विवाह का मंण्डप कभी कभी सैंज ठठरी की चली जात मत कर तू मनुष्य। मनमानी मिट जायेगी जो आज है वह कहानी प्रकृति परिवर्तित हो मत मोह माया में पड़....! मिट जायेगी हस्ती रह जायगी सूनी बस्ती कब कौन कहां रह जायेगा फिर पता नहीं कब मिलन हो पायेगा तू बस दृष्टि बन दृष्टि बदल जायेगी मोह से दूरी हो जायेगी सत्य का होगा सामना .....! स्वरचित एवं मौलिक सृजन उदय सिंह कुशवाहा ग्वालियर मध्यप्रदेश