Rambriksh Bahadurpuri 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक #Ambedkarnagarpoetry/उड़ते बादल 64026 0 Hindi :: हिंदी
खींच खींच ले मन को जाते मीत मनोहर वे बन जाते , उमड़- घुमड़ कर आगे पीछे उड़ते बादल कहां को जाते | कुछ नाचते खुशी मनाते कुछ के आंसू झर झर जाते , सुख दु:ख का यह संगम कैसा ? नई नवेली दुल्हन जैसा , आंखों से जो जल बरसाते उड़ते बादल कहां को जाते || उनके सुख-दु:ख से क्या हम को? उनके दु:ख से ही सुख हमको , अपनापन तो दूर खड़ी है आशा केवल यही लगी है, जल जीवन हमको दे जाते उड़ते बादल कहां को जाते | खुद सुखी संसार सुखी है गैर के दु:ख से कौन दुखी है ? मानव का स्वभाव निराला बादल में भी गोरा काला, लौट कर वापस क्यों नहीं ? उड़ते बादल कहां को जाते ?
I am Rambriksh Bahadurpuri,from Ambedkar Nagar UP I am a teacher I like to write poem and I wrote ma...