Ashok Kumar Yadav 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक 8369 0 Hindi :: हिंदी
कविता- अतीत की परछाई मेरे अतीत की परछाई धुंधली, मुझे याद आ रही है बीते दिन। दिवास्वप्न में दिखाई देता चित्र, इंद्रायुध अर्धवृत्ताकार रंगीन।। मैं उतरा भू पिण्ड सा चमकता, अर्ध रात्रि का प्रहर नींद में डूबा। देखकर स्तब्ध थे चांद और तारें, मुझे आवाज दी मेरी महबूबा।। ओ भविष्य गामी अभिजन नर, बदहाली देख तू हरित धरा की। स्वर्ग का राज वैभव त्याग अभी, हे!महापुरुष दुःख हटा जरा की।। प्राचीन देश का नवीन विचार लिए, खेल मेरी अंगों से कोई नवीन खेल। हम दोनों में विद्युत तरंग की शक्ति, शिशु का विस्तार कर बनाकर मेल।। भूत को भूलाकर वर्तमान जिए जा, यही पल सुखद और आनंद वाला। मत भाग अपने कर्म से सुदूर अनंत, बनकर राजा, राज कर पहन माला।। परिचय- अशोक कुमार यादव निवासी- मुंगेली, छत्तीसगढ़ संप्राप्ति- सहायक शिक्षक सम्मान- मुख्यमंत्री शिक्षा गौरव अलंकरण 'शिक्षादूत' पुरस्कार से सम्मानित, उत्कृष्ट शिक्षक सम्मान, छत्तीसगढ़ हिन्दी रत्न सम्मान, बेस्ट टीचर अवॉर्ड। घोषणा पत्र- मैं यह प्रमाणित करता हूं कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।