सुजीत कुमार झा 20 Dec 2023 कविताएँ समाजिक Youtube 10872 0 Hindi :: हिंदी
कब तक तिजारत चलेगी दहेज का,कब तक बेटी सहती रहेगी समाजो के डेह का।क्या आज भी लोग गुमनामी मे खोये है, चादर तान कर सोये है।पता नहीं कितने माँ बाप रोये है, कितनो ने अपने स्वपनों को खोये है।गला दबाकर बेटी को ससुरालो मे दहेज खातिर हत्या कर दी जाती है,माँ बाप छाती पिटते अदालत कि चौखट कि भेट चढ़ जाती है।अरे कहा से लाओगे अपने गुल के लिए गुलदस्ता, क्या बेटी हि है हमारे समाज मे सब से सस्ता।अगर ऐसे हि चलता रहा तो, हाहाकार आजायेगा बिन ब्याहे घर मे बेटा मर जायेगा।कोई बेटी का बाप मुह फेरने तक न आएगा। मिलकर कसम खाले, एक कदम तुम चलो एक कदम हम चलेगे, किसी बेटी को दहेज कि भेट ना चढ़ने देगे।अरे कब तक आँखे खोलो गे, समानता के अधिकार से समाज मे बेटी को तोलो गे।अरे धन थी पुस्तानी हजारो गुण के थे बखानी तोभी लाखो लोगो मे अच्छे पति की झलक तक ना आपायी है, गरीब घर कि बेटी थी जन्मी किस्मत कि भी थी ठंकि फिर भी रास्ट्रपति बनके दिखलाई है।क्या तेरे समाज मे कोई मर्द इससे बड़ी भी कोई पद पाई है।अगर कम पर जाए तो याद कर लेना रानी पद्मिनी लक्ष्मीबाई इसी धरा के उपवन थे,जिनके चरणों के चिन्ह पर चढ़ाये सुमन थे।क्यो मेरे समाज मे बेटी के जन्म पर चेहरा मुरझाता है, वो सौहार्द सा माहौल किउ नजर नही आता है।क्यो बेटी के जन्म पर स्वर धीरे से निकलता है, सामने वाले का जवान भी ऐसे हि फिसलता है पुछ कर कोई पाप कर दी हो।उसने अपने अंदर अभी शाप सि भर ली हो।अगर ऐसे ही चलती रहेगी समाज की रेल, तो बहुत जल्द ही होगा भयानक खेल।