Ambuj Pandey(Aru) 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक #वीर् रस की कवितायं, # जिंदगी का फर्ज,# लक्ष्य को पाने की जिद्द 84413 0 Hindi :: हिंदी
जरा इक बात बाताओ तुम हार गये क्या सांस तो चल रही है पर अपने को जिंदा मार गये क्या। हाँ माना तुमने चोंट बहुत खा ली है जीत की आश लगाय हार बहुत पा ली है। लेकिन सोचो उस माँ की पीड़ा क्या वो तुम्हे जन्म देने से रुकी थी क्या तुम्हारे बाबूजी के पैरों मे छाले पड़ गये तुम्हारा भविष्य बनाने मे लेकिन उनकी चाल रुकी थी क्या। अरे तो जब वो नही झुके तो तुम कैसे झुक सकते हो तुम तो फिर भी कर्जदार हो भला तुम कैसे रुक सकते हो। जागृति करो स्वयं चेतना और स्वयं हि हाको रथ अपना बचपन मे तो बहुत किये आज स्वयं हि पूर्ण करो हठ अपना। भूल जाओ सब बीती बातें ये मानो की ली अभी अंगड़ाई है सीना चीर दिया पर्वत का उस बुड्ढे ने तुम्हारे तो रोम रोम मे तरुणाई है। इक बात बता दु मै की जो लक्ष्य से ज्यादा रोने पे ध्यान लगायगा बन जायगा हसीं का पात्र लेकिन खुद नही हँस पाएगा। लक्ष्य भेद कर जो जीतेगा जग को अनंतकाल तक बस वही रह जायगा खुद तो लेटे होंगे चिरनिद्रा मे लेकिन अपनी यादों से अपना अहसास कराएगा। धन्यवाद