Beauty yadav 20 Feb 2024 कविताएँ समाजिक तिलमिलाती गरीबी, लाचारी ,वेवसी,मजबूरी 12993 0 Hindi :: हिंदी
कड़कती ठंड में , चीथड़ों में तिलमिलाती गरीबी कलम पकड़ने की उम्र में , पत्थर उठाती गरीबी बच्चे को कंधे पर लिए , फूल बेचती मां की बेशर्म गरीबी अक्सर भूखे पेट रह जाते हैं वह किसान जो सबका पेट भरने के लिए अन्न उपजाते हैं । शाम को थककर सो जाते हैं वह मजदूर , जो सड़कों पर ऊंची इमारतें बनाते हैं ।