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बेटी

अंजली कुमारी 22 May 2024 कविताएँ समाजिक बेटी 6205 0 Hindi :: हिंदी

बेटी को लोग समझते हैं क्यों बोझ?
बेटी तो है  निर्मल खोज,
इसी ने तो ब्रह्मांड रचाया
पूरी दुनिया है इसी की माया।

यही तो है लक्ष्मी कूल की
दुर्गा, सीता, पार्वती यही है,
क्यों इनका फिर हम विनाश करें?
जब इसी से पूरा जग चले।

कभी मां बन लोरी सुनाती
कभी बहन बन राह दिखाती,
पत्नी बनती है जो वह जीवन का सहारा हो जाती
बेटी अनेक रूपों में दुनिया चलाती।

देश की रक्षा करने वाली
दुश्मनों से लड़ने वाली,
अस्त्र-शस्त्र चलाने वाली
बेटी थी लक्ष्मीबाई।

बेटों से आगे रहती है
हर कदम हर मोड़ पर,
पीछे नहीं अब वह बेटों से 
इस सफलता की दौड़ में।

बेटी में बसती मात-पिता की जान
फिर क्यों हरते तुम इसके प्राण ?
बेटी को भी पढ़ने दो तुम
बेटी को भी बढ़ने दो।।

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