कविता पेटशाली 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक 82733 0 Hindi :: हिंदी
अरसे ,से ,बीती ,कहाँ,रैन, सोए,भी भला कैसे ,गुलजार,। छड़ी ,इक ,दिखाते ,गयी ,नैन,। भीड़,से जागा ,कभी तो, कभी सन्नाटे में ,रहा अभागा,। आखिरकार ,बीती कहाँ,यह रैन,। नहीं ,यह ,अनबन अपनी रहने दो , घड़ी को भी कहाँ,अब चैन,। सिरहाने पर ,इक पुस्तक ,। खामोश ,सी लेटी,। मगर खुले रहे ,कविता के नैन,। यद्यपि ,यह बोली ,। हथेली ,जो आधी,पड़ी ,मुझपर, आखिर,उन्हें ,हाथ ,मिलाना था ,किस ओर,। हवा ,का भी रह धमकी भरा संदेश,। जिसके लिए इतनी ,पीड़ा रही,। आखिरकार ,वह ,तो सदियों ,से बसा ,रहा, परदेश,। अरसे ,से बीती ,कहाँ,रैन,।। कविता पेटशाली ✍️
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