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मोहब्बत जरूरतों तक

Mithun anuragi 13 Jan 2025 कहानियाँ प्यार-महोब्बत Mithun Anuragi, love story in Hindi, hindi Prem kahani, प्रेम कहानियां, मोहब्बत जरूरतों तक 2691 0 Hindi :: हिंदी

यह कहानी सिर्फ कहानी नहीं आज की इश्क की सच्ची दास्तान है यह कहानी आज के समाज की हकीकत को बयां करती है। कहानी का उद्देश्य किसी भी समुदाय की भावनाओं को आहत करना नहीं है।

एक शहर में बड़ा ही सुखी परिवार था परिवार  में छः सदस्य थे , पति पत्नी, माता पिता और उनके दो बच्चे,परिवार में सब खुश थे हर कार्य सही से हो रहा था । बच्चे अच्छे स्कूल में पढ़ लिख रहे थे। समय बीतते हुए परिवार के लड़के सौरभ को पड़ोस की एक शादी शुदा महिला संध्या से प्रेम हो गया । सौरभ की पत्नी आराधना ने सौरभ को समझाया कि बो उस स्त्री के बातों में न आए बो स्त्री ठीक नहीं है । बो अपने पति को छोड़कर शहर के अन्य पुरुषों के साथ प्रेम प्रसंग का नाटक करती है ।पर सौरभ के समझ में कुछ नहीं आ रहा था बो धीरे धीरे संध्या के झूठे प्रेमजाल में फंसता चला गया।


सौरभ को अपने परिवार का बिल्कुल भी ख्याल नहीं रहा बो तो संध्या के साथ दिन भर फोन पर बाते करता और पत्नी ब माता पिता की नजरे बचाकर चोरी छुपे उससे मिलने जाता । आराधना ने उसे ऐसा करने से मना किया तो उसने आराधना को मारा पीटा और उसके साथ अभद्र व्यवहार किया । 
समय बीतता चला गया सौरभ , संध्या से अत्यंत गहरा प्यार करने लगा और जब आराधना कुछ कहती तो उसे मारता पीटता। आराधना बिचारी चुप चाप सह लेती ।


एक बार सौरभ ने आराधना को बहुत पीटा, उसे काफी चोट आई।  आराधना बहुत दुखी मन से अपने मायके चली आई और ससुराल कभी न जाने का फैसला किया । 


उधर सौरभ संध्या की प्रेम कहानी अपनी रफ्तार पर दौड़ रही थी । सौरभ जो कुछ भी रुपए कमाता कुछ अपने माता पिता को देता और कुछ पैसे संध्या के खर्च के लिए निकाल लेता। 
संध्या का पति रमन संध्या के इस नाजायज रिश्तों से परेशान था वह संध्या से ये सब करने को मना करता लेकिन संध्या इसकी एक नहीं सुनती ।  सौरभ और रमन के बीच इस रिश्ते को लेकर झगड़े भी होते रहते ,लेकिन संध्या को इन झगड़ों से कोई फर्क नहीं पड़ता ।
ये कहानी यूं ही चलती रही। कुछ सालों बाद संध्या के पति की अकस्मात मृत्यु हो गई । अब सौरभ संध्या के ही साथ रहने लगा उनके रास्ते का कांटा निकल चुका था । सौरभ , संध्या से बहुत ही प्यार करने लगा और वह अपने माता पिता और पत्नी को भूल चुका था। एक बार सौरभ ऑफिस से आ रहा था तो उसने देखा कि संध्या किसी पुरुष के साथ बाइक पर बाजार में घूम रही थी। घर जाकर सौरभ ने संध्या से पूछा - 
सौरभ -    संध्या वह आदमी कौन था जिसके साथ तुम                  घूम रही थी। कहीं तुम मुझे धोखा तो नहीं दे रही ? मैं तुम्हें कितना प्यार करता हूं तुम्हारे लिए मैने आराधना और अपने बच्चों को भी घर से निकाल दिया। संध्या -   सौरभ तुम मुझ पर शक कर रहे हो मैं सिर्फ।                    तुमसे ही प्यार करती हूं । तुम्हे कोई गलत फेमी हुई है। मार्केट में कोई और होगा मैं तो आज पूरे दिन घर में ही थी।

सौरभ संध्या की बातों को सच मान लेता है और उसके साथ रहने लगता है। एक रात सौरभ की आंख खुलती है और वह देखता है कि उसके हाथ पैर रस्सी से बंधे है और  घर में कुछ आदमी हैं और संध्या हाथ में चाकू लिए सौरभ के ऊपर बैठी है।वह उसे मारना चाहती है सौरभ उससे पूछता है-
सौरभ-  संध्या तुम पागल हो गई हो ये क्या मजाक हे ये                चाकू मुझे लग जाएगा और मेरी जान जा सकती है। और घर में ये लोग कौन है आखिर तुम ये क्या कर रही हो ?
संध्या - यही तो मैं चाहती हूं कि तेरी जान चली जाए,तू                मेरी और सुमित की मोहब्बत के बीच दीवार है इसलिए मैं इस दीवार को अपने रास्ते से हटाना चाहती हूं।
सौरभ - पर संध्या तुम तो मुझसे प्यार करती हो और ये                सुमित कौन है जिसके लिए तुम मेरी जान लेना चाहती हो।
संध्या - प्यार और बो भी तुझसे हा हा हा हा मैं तो तेरे               पैसों से प्यार करती थी और अब मैं सुमित से प्यार करती हूं। सुमित का प्यार पाने के लिए मैने अपने पति रमन की भी हत्या कर दी तो तू क्या चीज है मैं तुझे भी मार दूंगी।
सौरभ - क्या रमन की हत्या तुमने की थी ? मैं तो सपने                में भी नहीं सोच सकता कि तुम पैसे के लिए अपने पति की भी जान ले सकती हो । आराधना ठीक कहती थी कि तुम्हारी आदत ठीक नहीं है।काश मैने उसकी बात मानी होती तो आज मेरी जान नहीं जाती।



संध्या चाकू से सौरभ की हत्या कर देती है और रमन के साथ भाग जाती है।                                                     " मिथुन अनुरागी की यह कहानी हमें प्रेरित करती है कि कोई भी पराया पुरुष या महिला हमारा कभी नहीं हो सकता । वह तो सिर्फ हमें अपने मतलब से प्यार करता है और मतलब समाप्त होते ही हमें अपने रास्ते से हटा देता है उसके लिए चाहे उसे हमारी जान ही क्यों न लेनी पड़े ।।
           Written by 
     Mithun Anuragi

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