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वर्तमान युग की नारी हूँ।

Anshika Agrawal 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक नारी शक्ति पर कविता , नारी सशक्तिकरण कविता , नारी पर कविता , womens empowerment poem,women education poem, आत्मनिर्भर नारी कविता , women's day poem , mahila diwas poem , hindi poem on womens , महिलाओं पर कविता , हिंदी कविता 18765 0 Hindi :: हिंदी

वर्तमान युग की नारी हूँ।
पिंजरबंद न रह पाऊंगी
तोड़ के सारी बंदिशें,
ऊँचे आसमां में उड़ जाऊंगी।
बहुत हुआ अत्याचार, 
अब और सह ना पाऊंँगी। 
पुरुष प्रधान समाज में,
अब और न कुचली जाऊंगी।  
वर्तमान युग की नारी हूँ।  
बन हाथों की कठपुतली,
अब और नाच न पाऊंगी।  
थाम अपनी जिंदगी की डोर,
स्वयं इसे चलाऊंगी।  
रख स्वयं को घुंघट में,  
अब और देख ना पाऊंगी।
जग को अपना नज़रिया भी दिखलाऊंगी।
वर्तमान युग की नारी हूँ।  
चूल्हे में स्वयं को, 
अब और फूंक ना पाऊंगी। 
बनाकर सशक्त स्वयं को,
घर संग अर्थव्यवस्था भी चलाऊंगी।
देश भी बनाऊंगी,संसार भी चलाऊंगी।


              

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