Santosh kumar koli ' अकेला' 03 Feb 2024 कविताएँ समाजिक परिस्थिति का पलड़ा 7661 0 Hindi :: हिंदी
मैं, तू मजबूर, मजबूर सारी दुनिया। लिया -दिया हो जाता, दिया- लिया। दिग्गज के दिन दरकते, लुढ़कता हाशिया। समझ से परे, ईश्वर की ग़ज़ब गुनिया। पकड़ते हैं दायां, हाथ लगता वाम। सरनाम का सरंजाम, बिगाड़ देता ख़ाम। गल शोभित हार, बन जाता दाम। सब कुछ होते हुए भी, अटक जाता काम। नहीं जाना चाहिए था, लक्ष्मण को बनबास। सीता संग लव, कुश का, नहीं होता विपिन में वास। पांडवों को मिल जाता, ईषत् हिस्सा काश। नहीं होता चीर-हरण, दुर्योधन का परिहास।