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न्याय

Umendra nirala 27 Jun 2024 कविताएँ राजनितिक Umendraniralasahityarachna 3218 0 Hindi :: हिंदी

गुनाह कर सर उठाये बोलता है,
गीता कि क़सम खाकर न्याय तौलता है।

अपने गुनाहों में डाल पर्दा खड़ा हुआ है,
शातिर सा औरों के राज खोलता है।

नागों सा विष भरा है, उसमें 
कशमकश भय में देखो प्रेम घोलता है।

खड़ा है, झूठ और सच के तह में 
नुमाइश ऐसी है कि बेखौफ़ डोलता है।

सच कि बुनियादें खिलाफ है, उसके 
फिर भी वह झूठ हर बार बोलता है।

                            _ उमेन्द्र निराला 
                          केंद्रीय इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रयागराज (उ. प्र.)

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