SHAHWAJ KHAN 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक हिन्द की धरती, इंसानियत, सामाजिक 88472 0 Hindi :: हिंदी
काँटों से भरी इस वादी में फूलों का बता दे पता मुझे ए हिन्द की धरती कहाँ है तू। इंसान कहाँ है बता मुझे। कोई हिन्दू कोई मुस्लिम कोई जाति की बात करे मन के काले अंधियारे में दीपक बाती से बात करे सच्चाई के गलियारों को झूठी तस्वीर बना डाला सच कह कर भी सच्चाई को झूठी तदबीर बना डाला। इस मंज़र ने गमगीन किया अब और नही तूं सता मुझे ए हिन्द की धरती कहाँ है तू। इंसान कहाँ है बता मुझे। ईमान के अक्से अनवर पर बेईमानी का चेहरा है ए अहले वतन अब तो तुम पर नफरत की हवा का पहरा है। या रब तू अपनी रहमत का सदका अब कर दे अता मुझे ए हिन्द की धरती कहाँ है तू। इंसान कहाँ है बता मुझे। काँटों से भरी इस वादी में फूलों का बता दे पता मुझे ए हिन्द की धरती कहाँ है तू। इंसान कहाँ है बता मुझे।