Santosh kumar koli 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक बेकफ़न लाशें 46521 0 Hindi :: हिंदी
किसी को नाम, किसी को लाभ, कोई मरा गुमनाम। किसी पर पूरा देश रोया, किसी पर मचा गिद्ध क़ोहराम। बंटे बताशे, फला-फूला, मिटा नींव बन जाने को। आजादी के स्वर्णिम कल का, मधुर सरगम गाने को। वह भी किसी का सिंदूर, साया, सहारा, राखी की था आस। उसके मरने पर भी, किसी पर टूटा था आकाश। सिंदूर बहा खून में, राखी तार- तार। उसके लगा तीर हुआ, पीढ़ियों के पार। इतिहास गिनता कफ़नों को, बेकफ़न भी ला शें होती हैं। वारिस सांसों की क़ीमत, लावारिस भी सांसें होती है। हम नहीं तो क्या, समय सभी का वारिस होता है। वैसे ईश्वर के पन्नों में, हर एक लावारिस होता है। आओ, हम आंसुओं के कफ़न से ढक दें। बेकफ़न लाशों को, उनका हक़ दे, उनका हक़ दे।