महफिल में कमी ना थी
महफिल में कमी ना थी,
दोस्तों की लेकिन ।
चंद दुश्मनों से जाकर,
कुछ दोस्त मिल चुके थे ।।
वे जो नजरे मिलाने से भी,
कभी कतराते थे हमसे ।
साथ पाकर मेरे दोस्तों का,
मुझसे बेख़ौफ हो चुके थे ।।
मेरे साथ रच रहे थे,
वो बस षड़यंत्र पे षड़यंत्र ।
अपनी नाकामी पर भी वो बस,
मुझको ही दोष रहे थे ।।
वो तो भला हो मेरे उन दुश्मनों का,
जो हमें सिर्फ नुकसान पहुंचना चाहते थे
संतोष ।
वर्ना दोस्त तो हमें,
जान से मारने की ही सोच रहे थे ।।
🙏धन्यवाद 🙏
संतोष कुमार
बरगोरिया
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(साधारण जनमानस)