Santosh kumar koli ' अकेला' 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक विरद 66972 0 Hindi :: हिंदी
जहां आप, अपने रहकर भी हो लुप्त। आप ही सुस्थ, बाक़ी सब सुस्त। जिस शिखर पर आप, अपने बहुत पीछे छूट जाएं। चाहकर भी आपका, नजरों से नाता टूट जाए। बनो तो चांद सितारों -सा, अपनों के साथ चमक सको। अपनों की गात रश्मि को, अपनी रश्मि से लपक सको। ऐसा भी क्या बड़ा, खुद ही खुद खिलखिला सकें। जैसे सबल सूर्य से, अपने भी नज़र न मिला सकें।