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उजाले लापता हैं और कोई गवाह नही है

मारूफ आलम 30 Mar 2023 ग़ज़ल समाजिक #गजल# उजाले# लापता 34434 0 Hindi :: हिंदी

बियाबान है जंगल यहाँ कोई सदा नही है
दम सा घुटता है अब कहीं भी हवा नही है

खमोशी से आकर छा गए सब और अंधेरे
उजाले लापता हैं और कोई गवाह नही है

ये जो जिद है तुम्हे वफ़ा मे मर जाने की
इस मर्ज का इलाज तो है मगर दवा नही है

क्यों डरते हो तुम वक़्त के हुकमरानों से
अपनी तरह वो बशर है कोई खुदा नही है

कई सदियों से यूहीं छुपा हुआ है वो'आलम'
दिल मे बसा है बस आंखो मे रवां नही है

मारूफ आलम

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