मारूफ आलम 30 Mar 2023 ग़ज़ल समाजिक gajal,social sayari, dard bhari shayari, sikayat shayari, love shayari 66952 0 Hindi :: हिंदी
रूह कब्ज करो,हथेली पे जान को उतारो रू ए जमीं पर कभी आसमान को उतारो हम अर्जी देकर थक चुके हैं अब तो कभी नक्शे कागज पर हमारे मकान को उतारो मार लो दो चार चांटे कहीं आड़ मे जाकर खुली सड़क पर ना हमारे मान को उतारो कश्तियाँ दरिया की तह मे जाकर धंस गईं किनारो की जिद थी कि तूफान को उतारो जुबान दी है तो जुबां से ना पलटो "आलम" खरा अपनी हर बात पर,जुबान को उतारो मारूंफ आलम