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Uday singh kushwah
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Uday singh kushwah
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@ usbri
, Madhya Pradesh
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तुमसे दूर होने लगा हूं-बेरंग बेनूर लगने लगा हूं मैं
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मंद-मंद गति से गतिमान शीतलता लिए
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सावन की फुहार-रिमझिम बरसता सावन आया
रिमझिम बरसता सावन आया। घर आंगन में खुशियां लाया। बैठा पवन देख सुमधुर मुस्कुराया। याद में प्रीतम का चेहरा मुरझया। बहती सरिता ने यौ
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सुनो-जो तस्वीर बनाई है अपने जहन में मेरी सभांल कर रखना
सुनो, जो तस्वीर बनाई है, अपने जहन में मेरी .... तुमने उसको सभांल कर रखना.... उसमें पल- पल बदलती सूरत दिखती है, मेरी.....
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अरी कैसे निभाऊं मेरी गुंइयां -मन जैसे नहीं मिलो संइयांं
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प्रकृति की छटा निराली-हृदय में हरदम अनुकरणीय बसंत खिलाते
प्रकृति की छटा निराली -अनूठी चित्रकारी ऊंचे पर्वतों के क्षितिज नभ से बतियाते प्रकृति की अप्रीतम-अनुपम छटा बिखराते हृदय में हरदम अन
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तुम और बरसात-तूम में जज्बात और जज्बातों में सिर्फ तुम
बरसता पानी, गरजते बादल, चमकती बिजली , मदहोश हवाऐं , हवाओं में बहता संगीत.... बूंदों में रबानी उन पलों में.. तुम्हारे हमारे धड़कते दिल... द
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तुम और बरसात-तूम में जज्बात और जज्बातों में सिर्फ तुम
बरसता पानी, गरजते बादल, चमकती बिजली , मदहोश हवाऐं , हवाओं में बहता संगीत.... बूंदों में रबानी उन पलों में.. तुम्हारे हमारे धड़कते दिल... द
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धड़कन-तुम्हारी सांसों की सरगम और मेरी धड़कन की युगलबंदी से बनता है
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उस पल- पल मैं मेरी बदलती सूरत दिखती है
सुनो, जो तस्वीर बनाई है, अपने जहन में मेरी .... तुमने उसको सभांल कर रखना.... उसमें पल- पल बदलती सूरत दिखती है, मेरी..... उदय सिंह कुशवाहा
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