Uma mittal 30 Mar 2023 आलेख धार्मिक बाल्मीकि जयंती , महर्षि बाल्मीकि 31387 0 Hindi :: हिंदी
महर्षि बाल्मीकि जी का जन्म आश्विन मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है| इस दिन शरद पूर्णिमा भी होती है |श्री बाल्मीकि जी ने ही महान ग्रंथ रामायण संस्कृत भाषा में ,श्लोक रूप में लिखा था |इस ग्रंथ को बाद में श्री तुलसीदास जी ने हिंदी में कविता और छंद के रूप में लिखा | हर हिंदू के घर में रामायण को पूरे आदर के साथ पढ़ा जाता है | इसमें श्री राम जी के चरित्र का वर्णन है| श्री बाल्मीकि जी ने इस ग्रंथ को लिखकर मनुष्य को अपने माता- पिता ,पति- पत्नी ,भाई-बहन ,दोस्त गुरु सेवक और सभी प्राणी से किस प्रकार से आदर करना स्नेह करना चाहिए ,बड़े ही सुंदर रूप में वर्णन किया है| कहते हैं श्री वाल्मीकि जी ने श्री नारद मुनि जी के कहने पर श्री राम जी की भक्ति और उनके नाम का सुमिरन कई वर्षों तक किया ,जिसके फलस्वरूप बाल्मीकि जी इतने बड़े महान लेखक बने और अमर हो गए | सच में जिस पर श्री राम जी की कृपा हो जाए उसका क्या कहना| आज जन-जन में श्री वाल्मीकि जी की बड़े धूमधाम के साथ पूजा की जाती हैं| इनका आश्रम सुंदर और भव्य था ,जब सीता मां उनके आश्रम में आए तब उन्होंने सीता माता को अपनी पुत्री माना | सीता माता का काफी आदर किया| श्री बाल्मीकि जी के आश्रम में ही सीता माता ने सुंदर दो पुत्रों को जन्म दिया ,जिनका नामकरण ऋषि बाल्मीकि जी के हाथों हुआ, जिनका नाम था लव और कुश | कितना प्यारा नाम रखा था उन्होंने जो आज भी नया सा लगता है| सीता माता जो साक्षात माता लक्ष्मी का अवतार थी,उन्होंने महर्षि बाल्मीकि जी के आश्रम में समय बिताया ,इस से ही पता चलता है कि महर्षि वाल्मीकि कोई साधारण व्यक्ति नहीं हो सकते| सीता माता के पुत्र लव कुश को शिक्षा महर्षि बाल्मीकि जी से मिली थी और वे दोनों पुत्र बहुत छोटे होते हुए भी इतने मेधावी, शक्तिशाली ,गुणों से परिपूर्ण बन गए थे कि उन्होंने श्री राम जी द्वारा रचाई गए श्री अश्वमेध यज्ञ के समय श्री राम जी की सेना व राम जी के भाइयों तक को पराजित कर दिया था |इससे भी यह सिद्ध होता है कि महर्षि बाल्मीकि ना केवल महान लेखक ,आदि कवि, महान कवि, संस्कृत के ज्ञाता थे , वे एक महान गुरु भी थे जिन्होंने लव कुश को दोनों प्रकार की शिक्षाएं अच्छा आचरण ,व्यवहार संगीत और युद्ध करने की शिक्षा तक दी थी जिसे संसार में दोनों पुत्रों को कोई पराजित न कर पाए ,वह भी बचपन में ही| हां , यहां यह संदेह नहीं है कि लव कुश सचमुच इतने भाग्यशाली थे कि उन्हें एक साथ दो गुरु प्राप्त करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ ,एक गुरु महर्षि वाल्मीकि और एक गुरु स्वयं की माता, माता सीता जिन के गुणों का वर्णन करना ही असंभव है क्योंकि उस समय सतयुग में यह सौभाग्य सिर्फ लव कुश को ही प्राप्त हुआ था जिन्हें अपनी माता और गुरु दोनों एक साथ प्राप्त हुए वह भी दोनों इतने महान| नहीं तो सभी राजकुमारों को तो शिक्षा लेने के लिए अपने माता-पिता से दूर गुरुकुल जाना पड़ता था| जिनके आश्रम में खुद श्री राम भगवान की पत्नी माता सीता साक्षात श्री लक्ष्मी माता गुरु जी की पुत्री रूप में रहकर उनका मान बढ़ा देती हैं ,ऐसे गुरु को मेरा बारंबार करोड़ों बार नमन | उमा मित्तल राजपुरा टाउन( पंजाब)