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शिक्षा-व्यवस्था की दुर्दशा

virendra kumar dewangan 30 Mar 2023 आलेख समाजिक Education 32856 0 Hindi :: हिंदी

शिक्षा-व्यवस्था की दुर्दशा

आगरा किले में कैद शाहजहां ने अपने बेटे बादशाह औरंगजेब से काम मांगा कि समययापन के लिए मुझे बच्चों को पढ़ाने दिया जाए।

इसपर औरंगजेब ने अदब से कहा,‘‘अब, आप बादशाह तो नहीं रहे, पर बादशाहत का सुख लूटना चाहते हैं।’’

सोचनीय बिंदु यह कि तब यदि पढ़ना-पढ़ाना समययापन और बादशाहत का काम था, तो आज भी है; बल्कि अब तो सदियां गुजर जाने के बाद शिक्षा व शिक्षक-व्यवस्था मंे पर्याप्त बदलाव आ गया है, इसलिए यह जीवन के लिए और भी जरूरी हो गया है।

लेकिन प्रश्न यही कि क्या कक्षा पढ़ाना आज बादशाहत का काम है? जवाब यह कि यह तब बादशाहत का काम हो सकता है, जब एक अदद स्कूल हो, उसमें साधन-सुविधाएं हों और पढ़ाई का पर्याप्त वेतन या मानदेय मिला करता हो।

आज शिक्षा-व्यवस्था की दुर्दशा पर रोना आता है। शिक्षा विभाग और आदिम जाति कल्याण विभाग में बरसोंबरस नई भरतियां नहीं हुआ करंती। 

इधर बेरोजगारी सिर चढ़कर बोलती रहती है, उधर बगैर शिक्षक या कम शिक्षक के बच्चों की पढ़ाई का स्तर गिरता रहता है, लेकिन भरतियांे की ओर राज्य सरकारों का ध्यान नहीं दिया जाता। विदित हो कि शिक्षा राज्य सरकारों का प्रधान विषय है। इसके बावजूद वे इसमें हीला-हवाला करते रहते हैं।

थोड़ी-बहुत भरतियां की भी जाती है, तो कहीं शिक्षा मित्रों की, कहीं शिक्षाकर्मियों की, कहीं संविदा शिक्षकों की, तो कहीं अतिथि शिक्षकों की। 

फिर मान लिया जाता है कि सरकारों ने पूरा इंतजाम कर लिया है। जबकि यह व्यवस्था कामचलाऊ और अधूरी है। इसे हम कुव्यवस्था या दुव्र्यवस्था कहें, तो ज्यादा सही है। 

ऐसी अव्यवस्था शिक्षा और शिक्षण-व्यवस्था में भेदभाव करता है। जरा गौर फरमाएं। एक अतिथि शिक्षक भी वहीं पढ़ाता है जो एक नियमित शिक्षक पढ़ाया करता है। 

अतिथि शिक्षक नाममात्र के मानदेय में अपना माथा फोड़ता है, जबकि नियमित शिक्षक भरपूर वेतन व भत्ता पाते हुए अतिथि शिक्षकों को हेय की निगाह से देखता है।

तीस पर तुर्रा यह कि कहीं स्कूल भवन नहीं है, तो कहीं बिजली-पानी-खेल मैदान व शौचालय का अभाव है। 

शौचालय हैं, तो बालक-बालिका का अलग-अलग नहीं मिलता। उनकी साफ-सफाई पर किसी का ध्यान नहीं है। वहां गंदगियां बजबजाती रहती हैं। 

कक्षा में बच्चों की बैठने की व्यवस्थाएं नहीं हैं। सायकिलें समय पर बंटती नहीं हैं। वह तब बंटती हैं, जब सत्र समाप्ति की ओर रहता है।

आजकल आनलाइन पढ़ाई जारी है। उसमें भी समस्याएं हैं। आधे से अधिक बच्चों के पास मोबाइल नहीं है। गांवों में बिजलियां नहीं हैं। 

जहां है, वहां उसकी आंख-मिचैनी रोजाना चलती रहती है। इससे मोबाइल चार्ज कैसे हो, यह भी चिंता का विषय बना रहता है?

फिर भी नई शिक्षा नीति से उम्मीदें पाली जा रही हैं कि शिक्षा-व्यवस्था दुरुस्त होगी, जो थोथी आशावादिता इसलिए प्रतीत हो रही है; क्योंकि राज्य सरकारें शिक्षा-व्यवस्था को सुधारने के प्रति कतई गंभीर नहीं हैं।

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