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मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना

virendra kumar dewangan 30 Jul 2023 आलेख धार्मिक Motivational 5587 0 Hindi :: हिंदी

हर मजहब के मूल में है मानवता का विकास और प्राणिमात्र के लिए दया व करुणा का भाव। अपनेपन, प्रेम, शांति व सदभाव।
 
इन्हीं उदात्त भावनाओं की रक्षा के लिए समय-समय पर इस धरा पर ईश्वर अवतरित हुए हैं। वास्तविक घार्मिक नेता भी इन्हीं सिद्धांतों की अभिरक्षा के लिए अपना प्राणोत्सर्ग तक किए हैं और सत्ता सिंहासनों के जुर्मों को सहे हैं।

	मगर यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि लोग धर्मों के मूल स्वरूप यानी मानवीय मूल्यों को भुलाकर पशु बन जाया करते हैं। वे मारकाट, खूनखराबा, जेहाद, हिंसा और पशुबलि को अपना मजहब मान बैठे हैं। यह मानसिक दिवालियापन की पराकाष्ठा है?

इससे यही आभास होता है कि लोगों ने, पंडे-पुजारियांे ने, साधु-संतों ने, मुल्ला-मौलवियों ने, पादरियों ने धर्म के सही स्वरूप को समझा नहीं है या फिर जान-समझकर लोगों को गुमराह किया है; बर्गलाया है।

	मजहब का नाता व्यक्ति की तर्कशक्ति से नहीं, अपितु ह्दय की भावना से है। भावप्रवण व्यक्ति तर्क-वितर्क को स्वीकार किए बिना भावनाओं में बहता है। जब भावुकता हावी होती है, तब तार्किकता भोथरी हो जाती है। यही मारक व संहारक शक्ति समस्याओं का कारक बन जाती है।
 
इसीलिए, समझदारी से काम लेने की जरूरत हुआ करती है। भावना के साथ मति व मानवीय दायित्व के समन्वय की आवश्यकता होती है। यही प्रेरणा धर्म को कायम रखती है, जो सुखकर प्रतीत होती है।

	दूर क्यों जाएं। कुछ साल पहले कई पाखंडी बाबाओं का पर्दाफाश हुआ था। कोई बलात्संग के केस में सलाखों के पीछे है, तो कोई चार सौ बीसी व कानून के अपालना के केस में जेल में निरूद्ध। 

इसके बावजूद, अंधभक्तों की आंखों में भावना का पर्दा पड़ा हुआ है। उनमें इतनी चेतना जागृत नहीं हो रही है कि वे गलत को गलत ठहराएं और उनसे विलग हो जाएं। दूरी बना लें। जबकि देश का कानून उन्हें दोषी करार दे चुका है। अदालतों में उन पर जुर्म साबित हो चुका है और वे अपने द्वारा किए गए जुर्म की सजा भुगत रहे हैं।

	धर्म लोगों को सभ्य व सुसंस्कृत बनाता है। उनमें उदात्त मानवीय धारणाओं को धारण करवाता है। यह न जाति, संप्रदाय या वर्गविशेष की वस्तु है, न जाहिलों व काहिलों की; वरन् यह उन लोगों की विषयवस्तु है, जो उच्च प्रेरणा व भावना से सुशिक्षित व सुसंस्कारित हैं।
 
इसके अभाव में धर्म बखेड़ों का जनक व वाहक है। इसी से मंदिर-मंदिर विवाद, मस्जिद-मस्जिद विवाद, मंदिर-मस्जिद विवाद, मंदिर-गुरुद्वारा विवाद, मस्जिद-गिरिजाघर विवाद होता है। मामला कोर्ट-कचहरी तक चला जाता है। बरसों के मशक्कत के बाद आए फैसलों से भी ऐसे तत्वों को संतुष्टि नहीं मिला करती।

	मजहब उन कट्टरपंथी जाहिलता का विषय भी नहीं, जो विषवमन करते हैं। ऐसी कट्टरवादी जाहिलता का दुष्परिणाम बंटवारे के रूप में देश बहुत पहले झेल चुका है। व्यापक नरसंहार भोग चुका है। देश के मर्म में राम-रहीम के उस बंटवारे का दंश आज भी कायम है, जो उसकी आत्मा को झकझोरा था।

	मजहब पवित्र भावनात्मक वस्तु है। चूंकि ईश्वर का स्वरूप निराकार है; इसीलिए वह परमसत्य, अनंत व असीम है। वह दिव्य, शक्ति व शांतिस्वरूप है। सो, अदृश्य है। सभी धर्मों में ईश्वर का प्रायः यही रूप है। फिर चाहे कोई हो। 

सवाल यही कि जो परमात्मा अनंत, असीम, दिव्य और अदृश्य है, वह क्योंकर लोगों से वैरभाव करवाएगा? आपस में लड़वाएगा। वैर रखवाएगा। वैर या विरोध करवाना तो उन लोगों का काम है, जो धर्म की खेती करते हैं। मजहब का व्यापार करते हैं। मजहबी उद्यम लगाकर धर्मभीरूओं की भावनाओं से खेलते हैं।

	यह देश समन्वयवादी है। इसकी यही विशेषता प्राचीनकाल से रही है। यहां की धन-संपदा से लालायित विधर्मियों ने इसे कई बार लूटा। धार्मिक आस्थाओं को खंडित किया।
 
लेकिन, वे इसकी समन्वयवादी संस्कृति को छिन्न-भिन्न नहीं कर सके। लाखों-करोड़ों तो यहीं के रह गए। इसी से धर्मनिरपेक्षता का उद्भव हुआ, जो धार्मिक-सांस्कृतिक समन्वय का सेतु बना। यह सेतु सब दूर दिखती है। लेकिन, जब कट्टरता हावी होती है, तब सांप्रदायिकता प्रस्फुटित होती है। 

	इसके दो प्रमुख कारण हैं। पहला, कट्टरवादी जाहिलता और दूसरा, राजनीतिक महत्वाकांक्षा। कट्टरवादी जाहिलता मजहबी जुनून पैदा करता है, तो सियासी महत्वाकांक्षा उन्माद की प्रबलता।
 
इन दोनों का एक ही मकसद है। देश में अराजकता पैदा करना और अपना उल्लू साधकर अपनी दुकानदारी चलाते रहना। ऐसे तत्वों को देशहित नहीं, स्वहित दिखता है। वे इसी में मरते-खपते रहते हैं। ऐसे तत्व पहले भी थे। आज भी हैं और आगे भी रहेंगे।
 
ये निहित स्वार्थी तत्व मजहब को अपने ढंग से परिभाषित करते रहते हैं और लोगों को उकसाते रहते हैं। समझदारी इसी में है कि ऐसे तत्वों की पहचान की जाए और उनसे दूरी बनाकर रखी जाए।

	इन्हीं फिरकापरस्त तत्वों के लिए मशहूर शायर इकबाल का कथन मौजू है किः-
‘‘मजहब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना,
हिंदू हैं, हमवतन हैं, हिंदोस्तां हमारा।’’
							--00--
अनुरोध है कि पढ़ने के उपरांत रचना को लाइक, कमेंट व शेयर करना मत भूलिए।

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