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जनसंख्या नियंत्रण है जरूरी

virendra kumar dewangan 30 Mar 2023 आलेख समाजिक Social 90627 0 Hindi :: हिंदी

भारत में कदम-कदम पर जनसंख्या विस्फोट जैसी स्थिति है। यह आर्थिक-सामाजिक असमानता के साथ-साथ नए-नए खतरे के रूप में दृष्टिगोचर हो रही है। देश में कहीं भी चले जाइए। किसी सड़क, अस्पताल, स्कूल-कालेज, बस स्टैंड, रेलवे स्टेशन, बाजार, माल, मंदिर-मस्जिद, गिरिजाधर, तीर्थस्थल और पर्यटन स्थल सब दूर भारी भीड़ नजर आती है। फिर चाहे दिन हो या रात; सुबह हो या शाम; हर वक्त भीड़भाड़ की यह स्थिति सबको मुंह चिड़ा रही है। 
अगर देश में उपलब्ध पर्याप्त श्रमबल व मानसिक बल से आर्थिक विकास की इबारत लिखी जानी है, तो हमें नया जनसंख्या नीति बनाना होगा, जिसमें ‘एक परिवार एक संतान’ की नीति को लागू करना होगा। दूसरी ओर विकास की डगर पर निरंतर बढ़ते रहकर गरीबी, शिक्षा व स्वास्थ्य पर काम करना होगा, ताकि सब परिवार जनसंख्या नियंत्रण की महत्ता को समझ सकें।
एक अनुमान के अनुसार, जनसंख्या विस्फोटक होने से देश में 10 करोड़ से अधिक लोग बेरोजगार हैं, जो खाली दिमाग शैतान का घर को चरितार्थ करते हुए अपराध, उग्रवाद, नक्सलवाद, दंगे-फसाद, माब लिंचिंग में दिमागी जमाखर्च करते रहते हैं। जनसंख्या की इसी अंधाधुंध बढ़ोतरी का ही नतीजा है कि देश में एक अनार सौ बीमार नहीं, हजार बीमार के हालात हो गए हैं।
कुछ साल पहले मप्र में 9325 पटवारियों के चयन परीक्षा के लिए 12 लाख से अधिक आवेदन पहुंच गए थे। जिसमें भी निर्धारित शैक्षणिक योग्यता 12वीं से अधिक योग्यताधारी अर्थात स्नातक, परास्नातक, पीएचडी, इंजीनियरिंग व एमबीए थे।
जो सुविधासंपन्न और अधिकारसंपन्न वर्ग हैं, उनको बच्चों की अधिकता से कोई फर्क नहीं पड़ता। उनकी जिंदगी मजे से कटती रहती है, बल्कि वे अपने संख्याबल के आधार पर दूसरे पर रौब गाठते रहते हैं। लेकिन जो गरीब-गुरबे हैं, उनके घरों में खाने के लाले पड़े जाते हैं। उन्हें दो जून की रोटी भी मयस्सर नहीं होती। 
देश में उप्र. बिहार, मध्यप्रदेश, राजस्थान, असम, छत्तीसगढ़, झारखंड इन सात राज्यों के 146 जिले ऐसे हैं, जिसमें तीव्र प्रजनन दर पाई गई। नेशनल फेमिली सर्वेक्षण के मुताबिक इन राज्यों में प्रजनन दर औसत 3 से 3.50 हैं। 
इन सात राज्यों में देश की कुल आबादी का 44.2 प्रतिशत निवासरत है और इन्हीं बीमारू राज्यों में सबसे अधिक गरीबी, बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ्य व प्रदूषण की समस्या है। इसके विपरीत दक्षिणी राज्यों में प्रजनन दर संतोषजनक स्तर पर 1.5 है।
देश में सिखों की जनसंख्या घट रही है, तो हिंदुओं की लगभग स्थिर है या कहीं-कहीं घट रही है। सीमावर्ती राज्यों असम, मणिपुर, पं.बंगाल और बिहार में मुस्लिमों की संख्या में वृद्धि राष्ट्रीय औसत से अधिक है, तो इसका सबसे बड़ा कारण बांग्लादेश सीमा से घुसपैठ है और इन समुदायों के द्वारा बढ़ती जनसंख्या को अपने लिए फायदेमंद मानना है।
देशभर में हिंदुओं की संख्या में कमी का एक बड़ा कारण आदिवासी और दलित लोगों के द्वारा बड़ी संख्या में ईसाई व बौद्ध धर्म को अपनाना है। 1951 में अरुणाचल प्रदेश में भारतीय मूल के लोग 99.21 फीसदी थे, किंतु 2011 में उनकी आबादी घटकर 67 प्रतिशत रह गई है।
बढ़ती आबादी सभी समस्याओं की जननी है। यह सरकारो और नीतिनियंताओं को सिद्दत से समझने की जरूरत है कि जनसंख्या  नियंत्रण के बिना हर योजना, हर परियोजना और हर आयोजना असफल है। इसके नियंत्रण के लिए सख्त व माकूल कदम उठाने की नितांत आवश्यकता है। 
यह तर्कसंगत भी है; क्योंकि पढ़-लिखकर युवावर्ग पूर्वापेक्षा कैरियर बनाने और संवारने में लगे हैं। वे अब शादी को प्राथमिकता नहीं देते। लिहाजा, ‘‘हम दो और हमारे दो’’ की नीति से आगे जाकर ‘एक परिवार, एक संतान’ की नीति को कढ़ाई से लागू किया जाना चाहिए। 
जिनके पास एक से अधिक संतानें हैं, उनको शासकीय नौकरी नहीं देना, चुनावों से वंचित करना, सरकारी सुविधाएं, अनुदान और छूट नहीं देने का दंडात्मक प्रावधान लागू किया जाना चाहिए। फिर चाहे कोई किसी धर्म का हो, यहां जाति-पंथ नहीं, देश की सबसे बड़ी समस्या और राष्ट्रीयता देखी जानी चाहिए। 
इस महती कार्य के लिए विधान बनाने में यदि कोई शख्स अडं़ंगेबाजी करता है, ओछी सियासत करता है, तो उसको जेल की हवा खिलानी चाहिए।  इसी के साथ जिन परिवारों में केवल एक संतान हैं, उन्हें ब्लाक, तहसील, जिला स्तर पर राष्ट्रीय पर्वों में प्रोत्साहित और पुरस्कृत भी किया जाना चाहिए।
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अनुरोध है कि लेखक के द्वारा वृहद पाकेट नावेल ‘पंचायत’ लिखा जा रहा है, जिसको गूगल क्रोम, प्ले स्टोर के माध्यम से writer.pocketnovel.com पर  ‘‘पंचायत, veerendra kumar dewangan से सर्च कर व पाकेट नावेल के चेप्टरों को प्रतिदिन पढ़कर उपन्यास का आनंद उठाया जा सकता है और लाईक, कमेंट व शेयर किया जा सकता है।

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