Poonam Mishra 09 Mar 2024 आलेख समाजिक एक पृष्ठ जो बार-बार मन में उठ रहा है 3910 0 Hindi :: हिंदी
आज न जाने क्यों मन बहुत उदास था जब से मैं हॉस्पिटल से घर आई हूं और मुझे डॉक्टर ने आराम करने की सलाह दी है तब से मैं लेटे लेटे बहुत कुछ सोचने लगी हूं मन इधर-उधर भागता रहता है न जाने क्यों समय के साथ चीजे इतनी तेजी के साथ परिवर्तित होती है कि हम उसे समझ ही नहीं पाते आज उम्र के इस मोड़ पर जब मैं बिस्तर पर पड़ी हुई हूं और मेरी तबीयत ठीक नहीं है तब मैंने महसूस किया कि मैं जिन लोगों के लिए बहुत कुछ किया है शरीर से पैसे से और हमेशा उन लोगों की सेवा करने के लिए और उन लोगों के दुख सुख में हमेशा खड़ी रहती थी इसे आप मेरा स्वभाव कहें या मेरी आदत मेरी है आदत है कि है कि यदि मैं किसी की परेशानी को सुनती हो तो तुरंत वहां पहुंच जाती हूं और उसे अपने स्तर से दूर करने का प्रयास करती हूं ऐसा करने में मुझे खुशी भी बहुत महसूस होती है परंतु मैंने देखा कि जब आज मुझे उन लोगों की जरूरत है तब मेरे पास कोई नहीं है मैं अकेली अपने आप को सहारा दे रही हूं मेरा पूरा एक भरा पूरा परिवार है मां बाप भाई बहन सास ससुर परिवार में किसी की कमी नहीं है परंतु सबके होते हुए भी मैं आज उम्र के इस मोड़ पर बिल्कुल अकेली हूं ।हां कोई मेरा सहारा बन के खड़ा है तो मेरा जीवन साथी ।जो हमेशा से ही मेरे साथ खड़ा रहा है और आज भी जब मैं दर्द से गुजर रही हूं तो वह मेरे पास ही रहते हैं मुझे अच्छा लगता है कि शायद मैंने कोई पुण्य किया है जिससे मुझे ऐसा जीवनसाथी मिला जो मुझे दुख के समय एक पल भी अकेला छोड़कर कहीं नहीं जाता शायद यह मेरे कर्मों का फल हो कहा जाता है ना कि 'सब कुछ जहां में नहीं मिलता कहीं जमीं तो कहीं आसमान नहीं मिलता" तो शायद सब कुछ मुझे नहीं मिल सकता कुछ अच्छा तो कुछ बुरा मिला ही है परंतु मेरे लिए यह बहुत ही विचारणीय प्रश्न है कि जब मैं परिवार के किसी सदस्य के दुख में हमेशा ही खड़ी रही कभी भी उन्हें अकेला महसूस नहीं होने दिया तो आज मैं इस समय बिल्कुल अकेली क्यों हूं? सिवाय एक व्यक्ति के इस बात से मुझे बहुत उलझन से महसूस हो रही है परंतु मैं यह प्रश्न किसी से पूछ नहीं सकती और मैं जानना भी नहीं चाहती स्वरचित लेखिका पूनम मिश्रा