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चीन की चालाकियां

virendra kumar dewangan 30 Mar 2023 आलेख राजनितिक political 86449 0 Hindi :: हिंदी

भारत की स्वतंत्रता के दो साल पश्चात् चीन 1949 में पीपुल्स रिपब्लिक आफ चाइना (पीआरसी) बन गया। तब भारत पहला गैरसाम्यवादी मुल्क था, जिसने पीआरसी को मान्यता दिया, तदुपरांत उसके साथ दोस्ती का हाथ बढ़ाया था।
लेकिन चीन अपनी कुटिल चालों का सबूत देते हुए 1950 में तिब्बत पर हमला बोल दिया और उसको हथिया लिया। 
आशय यह कि जो तिब्बत भूटान व नेपाल की तरह कभी बफर स्टेट हुआ करता था, वह चीन की चालाकी की वजह से चीन का हिस्सा बन गया और चीन भारत के एकदम करीब पहुंच गया। 
1954 में तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और चीनी प्रधानमंत्री चाऊ एन लाई के बीच पंचशील समझौता हुआ था। 
तभी ‘‘हिंदी-चीनी भाई-भाई’’ का नारा भी खूब उछला गया था, लेकिन चीन ने भाईचारे को धता बताकर 1962 में भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया और अक्साई चिन का हजारों किमी क्षेत्र हड़प लिया।
दरअसल, चीन के अत्याचारों से तंग आकर 1959 में तिब्बती आध्यात्मिक गुरु दलाई लामा अपने अनुयायियों के साथ हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में बस गए थे। 
इससे कुपित चीन ने उल्टे भारत पर तिब्बत और हिमालयी क्षेत्र में विस्तारवाद व साम्राज्यवाद का आरोप मढ़ दिया। इसी से दोनों देशों के बीच सीमा विवाद का आरंभ हो गया, जिसकी परिणति 1962 के युद्ध रूप में दिखने लगी।
दरअसल, भारत-चीन की सीमारेखा 3,488 किमी की है, जो जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, सिक्किम से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक विस्तारित है। इन्हीं प्रदेशों में चीन सीमा-विवाद के लिए नई-नई चालें चलता रहता है और भारत के खिलाफ आएदिन युद्धोन्माद पैदा करता रहता है।
3,488 किमी का यही विशाल क्षेत्र एलएसी (लाइन आफ एक्चुअल कंट्रोल) कहलाता है, जो भारतीय व चीनी नियंत्रण क्षेत्र को एक-दूसरे से अलग करता है, लेकिन चीन इसे 2000 किमी ही मानता है और अपनी झगड़ालू प्रवृति के कारण शेष क्षेत्र को कब्जाने की कोशिशें करता रहता है।
वस्तुतः, एलएसी वह दुर्गम पहाड़ी व पथरीली इलाका है, जो ग्लेशियरों, बर्फ के रेगिस्तानों, बर्फानी चोटियों, दुष्कर पहाड़ियों और बर्फभरी नदियों व वादियों से पटा पड़ा है, जहां पर आम मानव का रहना तो दूर, पहुंचना तक दुभर है।
				विवादित स्थल
1.	पैंगोग त्सो झीलः हिमालय में लद्दाख के पास 14 हजार फीट की ऊंचाई पर पैंगोंग त्सो झील है, जो लंबी, संकरी व गहरी है। झील का 45 किमी क्षेत्र भारत में और 90 किमी क्षेत्र चीन में है। इस झील के बीचोंबीच एलएसी गुजरती है, जो चुशूल घाटी के मार्ग में है। 1962 के युद्ध में यहीं से चीन ने अपना प्रमुख हमला किया था।
2.	गलवान घाटीः लद्दाख व अक्साई चिन के मध्य भारत-चीन सीमा के समीप गलवान घाटी है। यह घाटी अक्साई चिन में है, जो 1962 के पूर्व भारत का हिस्सा था। अब, एलएसी अक्साई चिन को भारत से अलग करती है। गलवान घाटी भारत के लद्दाख व चीन के दक्षिणी शिनजियांग तक विस्तृत क्षेत्र है। 
3.	तवांगः तवांग अरुणाचल प्रदेश में है, लेकिन चीन इसे अपना समझता है। ब्रिटिश भारत एवं तिब्बती शरणार्थियांे के मध्य 1914 में करार हुआ था, जिसमें उत्तरी अरुणाचल के हिस्से को चीन व दक्षिणी हिस्से को भारत का माना गया था।
4.	डोकलामः डोकलाम सिक्किम सीमा के निकट ‘चीकेन नेक’ है। चीन और भूटान इस क्षेत्र में अपनी दावेदारी करते हैं। भारत भूटान का इसलिए समर्थन करता है, क्योंकि यह सामरिक महत्व का क्षेत्र है और ‘बफर स्टेट’ कहलाता है। भारतीय व चीनी सैनिकों के मध्य यहां कई झड़पें विगत वर्षों में हो चुकी हैं।
5.	डेप्सांगः 2013 में यहां पर चीनी सेना का घुसपैठ हो चुका है। 25 दिनों तक दोनों देशों की सेनाएं जद्दोजहद करती रहीं। अपैल 2013 में भारतीय वायुसेना ने फेसआफ के करीब 16,614 फीट की ऊंचाई पर हवाईपट्टी बनानी आरंभ की है।
आपसी समझौते
पंचशील समझौते सहित 1962 से 2013 तक भारत व चीन के मध्य 7 समझौते हो चुके हैं। जिसमंे 1988, 1993, 1996, 2003, 2005 और 2013 में हुए हैं। 
तब 1988 में राजीव गांधी, 1993 में नरसिम्हा राव, 1996 में एचडी देवेगौड़ा, 2003 में अटल बिहारी वाजपेयी, 2005 और 2013 में मनमोहन सिंह क्रमशः भारतीय प्रधानमंत्री रहे थे।
2014 से एनडीए के कार्यकाल के 6 साल में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग 6 साल में 18 बार मुलाकात कर चुके हैं, लेकिन तनाव कम होने के बजाय बढ़ता ही चला गया है।
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अनुरोध है कि लेखक के द्वारा वृहद पाकेट नावेल ‘पंचायतः एक प्राथमिक पाठशाला’ लिखा जा रहा है, जिसको गूगल क्रोम, प्ले स्टोर के माध्यम से writer.pocketnovel.com पर  ‘‘पंचायतः एक प्राथमिक पाठशाला veerendra kumar dewangan से सर्च कर और पाकेट नावेल के चेप्टरों को प्रतिदिन पढ़कर उपन्यास का आनंद उठाया जा सकता है तथा लाईक, कमेंट व शेयर किया जा सकता है। आपकी प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा रहेगी।
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