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बोगस राशनकार्डों की पहचान-केंद्र सरकार के अनुसार

virendra kumar dewangan 27 Jul 2023 आलेख समाजिक One nation. One ration 8589 0 Hindi :: हिंदी

केंद्र सरकार के अनुसार, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून-नेशनल फूड सेफ्टी एक्ट लागू होने के बाद 2013 से 2020 के मध्य 4.39 करोड़ फर्जी राशनकार्डों को निरस्त किया गया है। 

ये बोगस राशनकार्ड सार्वजनिक वितरण प्रणाली में व्याप्त भ्रष्टाचरण को उजागर करता है कि किस तरह राजनीति व प्रशासन से जुडे़ लोगों की शह पर अपात्रों के द्वारा पात्रों का हक मारा जा रहा था।

जन प्रतिनिधि अपनी राजनीति को चमकाने के लिए शासकीय कर्मचारियों की मिलीभगत से नगरीय व ग्रामीण निकायों में सारा खेल खेल रहे थे और कर प्रदायक के धन को जनहित के नाम पर बंदरबांट करने में लगे हुए थे।

इनके लिए शासकीय योजनाओं में घालमेल कर अपात्रों को लाभ दिलाना वोट हथियाने का एक माध्यम है, जिसमें निचले स्तर के शासकीय कर्मी थोड़े से लालच में शामिल हो जाते हैं और हेराफेरी बदस्तूर जारी रहता है।

निहित स्वार्थी जन प्रतिनिधि ही राशनकार्ड को आधार से जोड़े जाने का विरोध कर रहे थे। यह विरोध असम, प. बंगाल सरीखे उन राज्यों में ज्यादा हो रहा था, जहां घुसपैठिये काबिज हो गए हैं।

वोट की खातिर देश की सुरक्षा और संसाधनों के साथ खिलवाड़ करनेवाले ये लोग किस कदर अपना जाल राशनकार्ड और आधारकार्ड के दम पर फैला रखे हैं, इसका प्रत्यक्ष प्रमाण असम में व्याप्त घुसपैठिये हैं, जो वहां के मूल नागरिकों से अधिक हो गए हैं।
 
भला हो भारत के शीर्ष कोर्ट का जिसने जन कल्याणकारी योजनाओं को आधारकार्ड से जोड़ने को सही ठहराकर स्वार्थी तत्वों के मंसूबांे पर पानी फेर दिया है। फिर भी, भ्रष्टाचार के चलते घुसपैठियों को आधार नंबर दिलाना जनप्रतिनिधियों के लिए कोई मुश्किल काम नहीं है। इस पर निगाह रखना प्रशासनिक अधिकारियों का काम है कि स्वार्थी तत्वों को ऐसा करने से रोकें।

इसे केंद्र सरकार की प्रतिबद्धता ही कही जा सकती है कि वह सार्वजनिक वितरण प्रणाली की कमियों व खामियों को दूर करने के लिए तमाम उपाय कर रही है, किंतु राज्य सरकारें वैसी तत्परता नहीं दिखातीं, जिसके चलते भ्रष्टाचरण करनेवालों का हौसला बढ़ता रहता है।

अधिनियम के तहत वास्तविक और उचित रूप से योग्य लाभार्थियों को नए राशनकार्ड नियमित रूप से जारी किए जाते हैं। इसके लिए जनवितरण प्रणाली में पारदर्शिता लाने के लिए इसे आधार नंबर से जोड़कर डिजिटाइज किया गया है। यही वह तकनीकी माध्यम है, जिससे अपात्र व फर्जी राशन कार्डधारियों की पहचान मुकम्मल की जा सकी है।

एनएफएसए लागू होने के उपरांत इससे लाभार्थियों के एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने या उनका देहांत होने पर डाटा को अपडेट करने और डाटा के दोहराव को रोकने में सहायता मिली है।

गौर करनेवाली बात यह भी कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के अंतर्गत केंद्र सरकार जनवितरण प्रणाली के माध्यम से 81.35 करोड़ लोगों को अनाज वितरण करने के लिए राज्यों को किफायती दर पर खाद्यान्न उपलब्ध कराती है।

केंद्र सरकार की यह भी योजना है कि एक देश-एक राशनकार्ड को बेहतर तरीके से अमलीजामा पहनाया जा सके, ताकि जरूरतमंदों को देश के किसी कोने में भी सस्ते दर पर अनाज हासिल हो। लेकिन, कतिपय राज्य सरकारों की उदासीनता दर्शाती है कि वे जनकल्याण के कार्याें में रुचि लेना नहीं चाहते।

जनवितरण प्रणाली के तहत राज्यों को दो रुपए प्रति किग्रा की दर से चावल और तीन रुपए प्रति किग्रा की दर से गेहूं उपलब्ध करवाया जाता है, जिससे सरकारी खजाने पर हरसाल 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक का भार पड़ता है।
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