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बाल दिवस पर विशेषः आफत में मासूमों की जान

virendra kumar dewangan 30 Mar 2023 आलेख बाल-साहित्य Child Problem 87447 0 Hindi :: हिंदी

राजस्थान के कोटा के जेके लोन अस्पताल में 36 दिन में 110 बच्चे, जोधपुर स्थित डाॅ. संपूर्णानंद मेडिकल कालेज में 146 बच्चे, बीकानेर के पीबीएम अस्पताल में 162 बच्चे, उदयपुर के महाराणा भूपाल अस्पताल में 119 बच्चे और भोपाल के हमीदिया अस्पताल में 12 बच्चे असमय काल के गाल में समा गए। 
कोटा को छोड़कर शेष अस्पतालों के आंकड़े सिर्फ नवंबर-दिसंबर माह के हैं। जबकि पूरे सालभर इन गैरजिम्मेदार अस्पतालों में हजारों बच्चों की मौत होती रहती है।
इसके लिए राजस्थान सरकार ने इन मौतों के लिए कडाके की ठंड, प्रीमैच्योर बर्थ और कम वजन जैैसे अनर्गल कारणों को जिम्मेदार ठहराया है। यदि ये कारण इन मौतों के लिए हैं, तो राज्य सरकार ही पूर्व तैयारी नहीं करने के चलते दोषी तो ठहराई जा सकती है?
राज्य के स्वास्थ्यमंत्री ने अभी तक सिर्फ जिम्मेदारी तय करने की बात कहने और रिपोर्ट तलब करने के अलावा कोई कार्रवाई नहीं किया है। आखिर वे सालभर करते क्या रहे? 
मुख्यमंत्री इसे सीएए से जोड़कर देख रहे हैं और सीएए से जनता का ध्यान भटकाने का आरोप मढ़ रहे हैं।
उधर बीएसपी प्रमुख मायावती ने मांग की है कि बच्चों के प्रति की जा रही लापरवाही के लिए अशोक गहलोत सरकार को बर्खास्त कर देना चाहिए।
यही नहीं, गुजरात के राजकोट के पं. दीनदयाल उपाध्याय जनरल अस्पताल में पिछले महीने कुल 388 नवजात बच्चे भर्ती कराए गए थे। इनमें से 111 बच्चों की मौत हो गई है। जबकि अक्टूबर में 87 और नवंबर में 71 बच्चों की मौत हुई थी। दिसंबर महीने में अहमदाबाद के सरकारी अस्प्ताल में कुल 415 बच्चे भर्ती कराए गए थे। इनमें से 88 को नहीं बचाया जा सका।
गत वर्षों मंे उप्र के गोरखपुर से भी इसी तरह के दुःखद समाचार आए थे। वहां बच्चों के देहांत से हाहाकार मच गया था। सरकार अपना पल्ला झाड़ने के लिए अस्पताल प्रशासन को जिम्मेदार ठहरा रही थी और फौरी आंकड़े जारी कर अपनी जवाबदेही से बचने का प्रयास कर रही थी।
2017 के केंद्र सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, झारखंड और तेलंगाना में नवजात बच्चों की मौत दर गुजरात से ज्यादा है। अर्थात ये राज्य भी किसी से पीछे नहीं है। कुल मिलाकर पूरे देश के सभी प्रदेशों का यही आलम है।
मध्यप्रदेश में स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में हर साल औसतन 25 हजार से ज्यादा नवजात मर जाते हैं। प्रति हजार बच्चों में 32 नवजात महीनेभर भी जीवित नहीं रहते। वहीं, प्रति हजार पर 55 बच्चे अपना पांचवा जन्मदिन भी नहीं मना पाते। 
आंकड़े कहते हैं कि देश के अन्य राज्यों की तुलना में मप्र में शिशु मृत्यु दर सर्वाधिक है। 
जबकि केंद्र व राज्य सरकारें मिलकर आयुष्मान भारत योजना, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम), राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन (एनयूएचएम), मातृ स्वास्थ्य देखभाल, रोग नियंत्रण और दर्जनों राष्ट्रीय कार्यक्रम चला रही हैं।
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अनुरोध है कि लेखक के द्वारा वृहद पाकेट नावेल ‘पंचायतः एक प्राथमिक पाठशाला’ लिखा जा रहा है, जिसको गूगल क्रोम, प्ले स्टोर के माध्यम से writer.pocketnovel.com पर  ‘‘पंचायत, veerendra kumar  dewangan से सर्च कर और पाकेट नावेल के चेप्टरों को प्रतिदिन पढ़कर उपन्यास का आनंद उठाया जा सकता है तथा लाईक, कमेंट व शेयर किया जा सकता है। आपकी प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा रहेगी।
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