YOGESH kiniya 30 Mar 2023 आलेख समाजिक रिकॉर्ड तोड गर्मी पर आलेख। 52294 0 Hindi :: हिंदी
तपिश शब्द गर्मी की पराकाष्ठा को हमारे मानस पटल पर चित्रित करने के लिए पर्याप्त है। भारतवर्ष में तपिश अप्रैल से जुलाई तक अपने उग्र रूप से लोगों को रूबरू कराती रही है। सूर्य के पृथ्वी के निकट आ जाने पर तपिश अर्थात् ग्रीष्म ऋतु का आविर्भाव होता है ।ग्रीष्म ऋतु वर्ष की छह ऋतुओं में से एक ऋतु है। ग्रीष्म ऋतु हमारे जीवन की एक अपरिहार्य ऋतु है। क्योंकि न चाहते हुए भी हमे उसके अनुकूल बनकर उस तपिश को भोगना पड़ता है। इस ऋतु मैं प्रायः भारत के सभी स्थानों का तापमान बढ़कर 50 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच जाता है। हर सिक्के के दो पहलू होते है जहां यह तपिश हमें बे-हिसाब तपाती है, वहीं दूसरी तरफ यह मेघराजा को बरसने हेतु आमंत्रित करती है। तो हम कह सकते है कि जहां तपिश ज्वाला का उग्र रूप है तो वहीं दूसरी और अनंत जलराशि की भगिनी भी है। इस देश की धरा पर कुछ भाग ऐसा भी है जहां के लोग इस तपिश की एक झलक पाने को बेकरार हैं। जी हां ! मैं बात कर रहा हूं ,भारतवर्ष के उस हिस्से की जिसे हिमालय अपनी गोद में लेकर बैठा है। तपिश के इंतजार की कशक उन लोगों से पूछो; जहां लगातार चार माह तक बदरा अविरल रूप से मेहरबान रहते हैं। हां , तपिश की एक बात जरूर है , इसकी मेहमान नवाजी लोगो को केवल अल्पकाल के लिए ही अच्छी लगती है । इसका ज्यादा ठहराव किसको पसंद नहीं है। सदियों के अनुभव ने एक बात जरूर सिखाई है, की समय के साथ-साथ तपिश ने भी अपना पारा चढ़ाया है। क्या कभी चिंतन किया है, की तपिश के पारे को चढ़ाने में हमारा कितना बड़ा योगदान है। अगर मैं कहूं की शत-प्रतिशत ही हमारा योगदान है; तो कोई गुनाह ना होगा। वसुधा की प्राकृतिक सुंदरता को जिस बेतरतीब तरीके से हमने तार-तार किया है; मुझे नहीं लगता ,कि हमारी आने वाली पीढ़ीया हमें कभी माफ करेंगी। अब भी समय है, आओ हम सब मिलकर तपिश के पारे को उतारने के लिए वृहद स्तर पर वृक्षारोपण करें । ताकि वसुधा की सुंदरता बढ़े और वसुधा का यह सुंदर प्राकृतिक रूप तपिश के पारे को उतरने के लिए मजबूर करें।
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