सादगी
एक बार एक व्यक्ति ने मुझसे कहा कि
चलाकी जरूरी है। चालाक बनो सीधे-साधे
रहोगे क्या मिलेगा। कुछ ना मिलेगा पर वह
यह ना जानता था। जो उसमे मिलेगा। वो कही
ना मिलेगा ये वजह है कि मैं इसे चाहके भी
नही छोड सकता। दुनिया आपका गलत फायदा
उठायेगी। उसकी बात अपनी जगह सही
थी।क्योकि आज के सामाजिक जीवन में
दुनिया बहुत चालाक है।
चालाकी वह जो खुद में हो दुनिया को वह न
दिखा के कुछ और दिखा सके। जो वह देखना
चाहती है। वो ना दिखा के कुछ और दिखा
सके। सच्चाई की जगह झूठी बातें रखके
दुनिया को विश्वास दिला सके कि वो कह
रहा है सही कह रहा है और ये ही सही है और
ये ही चलाकी है । जबकि मैं किसी झूठी
बातों पर विश्वास नही रखता हूँ। मैं
वास्तविकता में जीना चाहता हूँ। जो
आनन्द इसमे मिलता है। वो मुझे उसमें कभी
न मिलेगा।
मैंने उसे एक जवाब दिया। एक सवाल के रूप
में- जब हमारा काम बगैर किसी चलाकी या
झूठ के हो रहा है। क्या हमे जब भी चलाकी
दिखाना या झूठ बोलना चाहिये? पर उसने
कहा चलाकी जरूरी है। आज के जीवन में
,समाज में। मैंने कहा दुनिया कितनी भी
चालाक बने। वो वास्तविकता को नही पहचान
पाती है। वे हमेशा सच्चाई से अनभिग रह
जाते है और जब उन्हे सच्चाई का पता चलता
है। वे उसमें गलत और सही के असमंजस्य
में ही रह जाते है। जब चलाक इंसान मुझे
समझने में असमर्थ रहा है। जो वो शोचता
है। मैं उसके विपरीत ही निकलता हूँ।
जबकि चालाक इंसान को मैं अच्छे से समझ
सकता हूँ। उसको भी और उसकी चलाकी को भी
लेकिन वो मुझे नही पहचान पाता है या समझ
पाता है। तो उस चालाकी का क्या फायदा और
किस काम की जो एक साधारण व्यक्ति को भी
ना समझ सके। तो अब बताओ चलाक कौन है? वो
या मैं...
कभी-कभी इंसान मेरे ही सामने कहते कि
काफी सीधा- साधा इंसान लगता है। इसे
क्या पता बैचारें को इन बातों के बारे
में और जो बाते उन्हें दूसरों के सामने
नही करनी होती है। वो भी मेरे सामने ही
कर के चले जाते है।
कभी-कभी मैं शोचता हूँ। क्या मैं इतना
सीधा हूँ या मेरी सक्ल ही ऐसी है। मैंने
कई बार चालाक बनने की कोशिश की फिर भी
लोग मुझे चालाक या चतुर नही मानते।
दूसरों को दिखाने के लिये कि मैं चालाक
हूँ ।मैंने कुछ ऐसे कार्य किये जो
दुनिया की नजरों में गलत है। जिन्हे
चालाक और चतुर इंसान भी न कर सके। लेकिन
इंसान मानने को तैयार ही नही। ये कहते
वह ऐसे कार्य नही कह सकता।