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हुस्न के मलिका

Rupesh Singh Lostom 30 Mar 2023 शायरी अन्य हुस्न के मलिका 8084 0 Hindi :: हिंदी

जब तू उमड़ती हैं इश्क़ के ज्वार बनके 
ज़िस्म बरस पड़ता हैं ताजा फुहार बनके 
रोम रोम तरसता हैं तुझ में सराबोर होने को 
थोड़ा मुझे भी भिगो देती सैलाब बनके 

ये हुस्न के मलिका रूपसी रूपमती 
लहू के तरह अंग अंग में उतरने लगी हैं 
मैं सिंधु के गहराई में खुद को डुबो रखा हूँ  
जब से चाहत बनके तू बदन में तैरने लगी हैं 

क्यों दरिया छुपाये बैठी हैं सिने में
कब आओगी उफनती तूफान बनके
मैं लहरों पे ही आशिया बनाये बैठा हूँ 
क्योंकी तू आएगी जरूर हवा के झोका बनके

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