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अहसास ढलती उमर कब

Pravin Chaubey 15 Feb 2025 शायरी देश-प्रेम #कविता#शायरी#कहानी#ओल्ड#न्यू # काव्य# 4134 0 Hindi :: हिंदी

कभी जो कंधे दुनिया उठाया करते थे,
आज खुद सहारे की तलाश में रहते हैं।
जो कदम बेफिक्र हवाओं में उड़ते थे,
अब हर मोड़ पर ठहरने लगते हैं।

आइना अब भी वही है, पर तस्वीर बदल गई,
कभी जवानी की लाली थी, अब झुर्रियाँ ढल गईं।
आँखों में अब भी ख्वाब झिलमिलाते हैं,
पर पलकों के नीचे कुछ आँसू भी छुप जाते हैं।

हाथ कांपते हैं, पर ममता कम नहीं होती,
बुज़ुर्गी की चुप्पी में भी दुआएँ नम नहीं होतीं।
जो रिश्ते कभी आसमान में उड़ते थे,
अब यादों के आसरे चलते हैं।

पर ये उम्र सिर्फ़ ढलती नहीं, सिखाती भी है,
हर सफ़हे पर ज़िंदगी की कहानी लिख जाती है।
बाल सफ़ेद हुए, पर दिल अब भी जवान है,
हर सांस में छुपा एक नया अरमान है।

"उम्र बदन की होती है, रूह की नहीं,
जब तक सांसें चलती हैं, जिंदगी थमती नहीं।"

            ✍️ प्रवीण चौबे

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