Ranjana sharma 30 Mar 2023 कविताएँ अन्य Google 60564 0 Hindi :: हिंदी
कितनी चंचल हो तुम अपनी मन की रानी हो तुम, जिधर चाहती हो उधर जाती हो तुम । गर्म में सबको राहत देती हो तुम ठंड में सबको सताती हो तुम, कितनी ताजगी है, तुममें कीट-पतंग , फूल-पत्ते खेलते हैं सब तुमसे। पतंगों को दूर आकाश में पहुंचती हो तुम। तारीफ करूं क्या तुम्हारी आखिर हो कोन तुम? "मैं हूं --------हवा ।" धन्यवाद।