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जब तू आसूं बनके बहती हैं

Rupesh Singh Lostom 03 May 2023 कविताएँ अन्य बहती 7785 0 Hindi :: हिंदी

बहती 
जब तू आसूं बनके बहती हैं 
सच कहु तो मन बेचैन होता हैं 
दिल उदाश तन बे मौत मरता हैं 
और तो और जिस्म भी मौन होता हैं 

मैं अक्सर चुप ही रहता हूँ खामोसी से 
जब तू खुद से ही खुद में अनजान होती हैं 

हर रोज़ थोड़ा थोड़ा तन गलता हैं 
पल पल बदन किस्तों में बदलता हैं 

अंगड़ाई ले के जिन्दा हैं जिंदगी 
जब की तू जन्नत में भी बे चैन हैं

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