Rupesh Singh Lostom 22 Jun 2023 कविताएँ समाजिक धुमैल मनवा 6410 0 Hindi :: हिंदी
धुमैल मनवा चादर ओढ़े धुमें मुख छूपाए कण कण को जिअरा तरसे बूंद बूंद पानी को मरे इंसान तन भूखा अन जल को मोर खेतबा करे सिंगार प्रेम के भूखा प्रेम सरूपा हमार रजबा करे अत्याचार रोज़ रोज़ एक प्रलोभन रचे रोज़ एक इतिहास जीने की रोज़ चाह बढ़ा के करता रोज़ रोज़ अपमान