DIGVIJAY NATH DUBEY 04 Jun 2023 कविताएँ समाजिक #कविताएं#bestpoems #दिग्विजय#hindi 2644 1 5 Hindi :: हिंदी
चलो अकेले ही चलते हैं इस सुनसान रास्ते पर अपनी पहचान बदलते हैं चलो अकेले ही चलते हैं जो चल रहे थे साथ अब साथ छोड़ने को बोल रहे शायद उनकी मर्जी होगी या होगी कोई मजबूरी हमारी छोटी पहचान के खातिर वो अपनी पहचान खो रहे होंगे या भविष्य के चिंतन में डूबकर अपना भविष्य बना रहे होंगे पर हमको कुछ चाह नहीं उनसे आग कोई आश नही उनसे अपने गंतव्य को पहुंचने के लिए एक नई राह पकड़ते हैं चलो अकेले ही चलते हैं उम्मीदें बहुत हैं इस जिंदगी को हमसे और हमे भी इनसे शुरुआत तो छोटी है पर चाह बड़े मन से बुलंदी के खातिर जो रास्ते गुजर रहे है उन हर एक रास्ते पर हर एक कदम पर छोड़ जाना है एक निशान जो साक्षी हो अपने परिश्रम का अपने बलिदान का अपने कर्तव्य का लोभ के समंदर में पुरुषार्थ की नाव रखते हैं चलो अकेले ही चलते हैं एक भीड़ खड़ी है इंतजार करने को इन रास्तों के अंतिम बिंदु पर जो पुकार रही अपने सर्वोच्च पे वो सर्वोच्च जो क्षीण कर देगा उस रास्ते के दर्द को जो राह में मिलती गई पहुंचूंगा जब थामे वो अपना ध्वज अपने हाथ में झुमेंगा सारा जग मेरे बाहु बल के ढाल से जो साथ छोड़े थे आयेंगे वापस घूमकर होगा उन्हें भी ज्ञात कैसे वक्त बदलते हैं चलो अकेले ही चलते हैं चलो अकेले ही चलते हैं ।। दिग्दर्शन