Rupesh Singh Lostom 30 Mar 2023 कविताएँ राजनितिक बो हाथ बदला हैं 43848 0 Hindi :: हिंदी
कौन कहता है की देश बदल रहा हैं मुझे तो लगता हैं समाज बिखर रहा हैं तलबार बही हैं बस धार कम हैं काटने वाला गर्दन भी बही मजबूर और मजलूम जो काट रहा सिर्फ बो हाथ बदला हैं हर तरफ तकरार हैं चारों ओर पड़ा लाश के अंबार हैं खून से सना आज भी कटार बही हैं न नर सुरक्षित न ही नारी छलता ठगता आज भी नीरमोहि कानून बही हैं जो सदियों से सह रहा अन्न पानी को मर रहा गांव खेड़े में बस रहा आज भी सिसकता हिंदुस्तान बही