Rupesh Singh Lostom 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक कण कण को 6034 0 Hindi :: हिंदी
अम्बर वरसे नैना तरसे बून्द बून्द पानी को प्यासा मनवा तरसे मुठी भर भूख को अंजुरी भर जल को अतृप्त अखियाँ तरसे ठोप ठोप नीर बहे अधर में फसा कंठ कण कण को पेटवा तरसे गल रहा तन
Login to post a comment!
...