Rambriksh Bahadurpuri 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक #Lajja kavita#Lajja per kavita#samajik kavita#Rambriksh kavita#Lajja kavita Rambriksh#rambriksh kavita#Ambedkarnagar poetry#rb poetry#ek samajik kavita#sharm per kavita#Laj sharm per kavita#श्रद्धा की कविता#लज्जा पर कविता#संघर्ष पर कविता कोश#कठिन जीवन पर कविता#मानव जीवन पर कविता#naari Jeevan per kavita 24467 0 Hindi :: हिंदी
नयी नवेली खिली गुलाब सी, मुख पर घूंघट पट डाली। हया लिहाज में झुकी खड़ी थी छुई -मुई सी अलबेली || लज्जा नारी की आभूषण, नारी का सम्मान यही | सोना चांदी हीरा मोती, तन मन का परिधान यही || नारी है तो लज्जा है , लज्जा है तो नारी है | लाज हया बिन नारी वैसी, ज्यों तलवार दो धारी है || लज्जा करती भेद नहीं, पुरुषों में लज्जा आती है | झुक जाती है आंखें उसकी, जब अगुलियां उठ जाती है || आओ जाने लज्जा कैसी, किससे करना लाज शर्म | क्यों झुक जाता है सिर आंखें , है कैसा यह मन का मर्म || मन की बातें मन ही जाने, लज्जा मन का है स्वभाव | हया ह्रदय का फूटा अंकुर, शर्म सामाजिक संयम भाव || लज्जा कोई न उस ईश्वर से! देख रहा जो सुबहो शाम | न कोई पर्दा हया शर्म का, कुकर्म पाप हो रहा तमाम || सबमें बैठा देख रहा वो, छिप न सकता कहीं कोई| फिर क्यों घूंघट,पर्दा कैसा, है एक पिता संतान सभी || लज्जा है तो पाप करो न, अधर्म असत्य का त्याग करो | जिस कार्य हेतु है जन्म हुआ़, कर कर्म जन कल्याण करो || रचनाकार-रामबृक्ष, अम्बेडकरनगर ______________________________________________________________________________________
I am Rambriksh Bahadurpuri,from Ambedkar Nagar UP I am a teacher I like to write poem and I wrote ma...