Rupesh Singh Lostom 30 Mar 2023 कविताएँ अन्य कन्फुज 14256 0 Hindi :: हिंदी
मैं ता ति था थी रा री का कि ना नि हमेशा मुझे कन्फुज करता करती है इसलिए मैं जब भी कुच्छ लिखता हूँ बिना भेद भाव किये मैं ति और ता का प्रयोग करता हूँ एक दिन मुझसे किसी ने पूछ लिया आप कितना पढ़े लिखे हो मैंने कहा मैं पढ़ लिख कर क्या करूँगा पढ़े बो जिसे देश चलाना है मैं तो इंसान रूपी इंसान हूँ दिन भर काम करता हूँ अगर खाने भर कमा लिया तो खा के नहीं तो भूखे सो जाता हूँ फिर भी सपना खुले आखों से देखता हूँ रोज़ सुबह उठकर बस ए हि सोचता हूँ शायद आज कुछ अच्छा होगा ये सोच नित कार्य में लग जाता हूँ पर मैं भी इंसान रूपी हि इंसान हूँ मैं मिडिल क्लास हूँ कभी कभी खुद को सवार टी वी के सामने बैठ जाता हूँ बही घिसे पिटे न्यूज़ बही सास बहु झगडे रिमोट को जोर से पटकता हूँ टी वी को बंद करता हूँ फिर दोनों पैंट के जेबो में हाथ डाल गली में निकल जाता हूँ मैंने क्या देखा एक गधा अपने साथी गधे से कह रहा था मैं गधा हूँ इंसान रूपी नहीं दो पैरों बाला नहीं चार पैरों बाला मैं रात भर सोता हूँ ढेचू ढेचू करता हूँ खुद के बज़न से ज़ादे बजन उठाता हूँ मालिक के हाथो मार भी खाता … पर शिकायत नहीं करता क्योकि इंसान नहीं हूँ इंसान जैसा