DIGVIJAY NATH DUBEY 30 Mar 2023 कविताएँ समाजिक Digdarshan 64395 0 Hindi :: हिंदी
जिस दिन उतारूंगा मैदान में , विजय पतला लहरा दूंगा मत छेड़ो मेरे जस्बा को , तुम पर भारी पड़ जायेगा छोड़ छाड़ के दौड़ भाग के खेल के रण से तू जायेगा आने देना कितने वीर धुरंधर जिनके मन में भाए बढ़ जायेगा कदम जहां फिर सूर्य अस्त तक ना मुड़ पाए छोड़ दे आशा कहीं निराशा की धुन में तू ना पड़ जाए अभी समय है दीप को ढक दे कहीं ये जोश में ना बुझ जाए अभी समय है मेरा ज्ञान के बहते दरिया में बहने की कुछ पल अभी पड़ा है तेरे पास बहादुर बनने की बोल रहे हैं लोग की मैं इतना कायर कैसे बैठा हुं कोई सभा में चीख रहा मैं इतना भय में क्यू रहता हूं उनको मैं बतला दूंगा भय की आंधी कितनी घातक है चिरेगी रण की सेना यही तो राणा का चेतक है दिग्दर्शन ।।